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________________ 398 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन ने स्वीकार किया है, इस श्लोक का पूर्वार्द्ध काम से प्रारम्भ होता है और उत्तरार्द्ध मोह से। यदि ग्रन्थकार की यह योजना युक्तिपूर्ण मानी जाए, तो बन्धन के कारण की व्याख्या में जैन, बौद्ध और गीता के दृष्टिकोण एकमत हो जाते हैं। उपर्युक्त श्लोक के पूर्वार्द्ध में ग्रन्थकार ने दम्भ, मान और मदको दुष्पूर्ण काम के आश्रित कहकर स्पष्ट रूप में काम को इन सबमें प्रमुख माना है और उत्तरार्द्ध में तो मोहात् शब्द का उपयोग ही मोह के महत्व को स्पष्ट बताता है। गीताकार यहाँ मोह (अज्ञान) के कारण दो बातों का होना स्वीकार करता है- 1. मिथ्यादृष्टि का ग्रहण और 2. असदाचरण, जो हमें जैन-विचारणा के मोह के दो भेद, दर्शन-मोह और चारित्र-मोह की याद दिला देते हैं। यह बात तुलनात्मक-अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। एक अन्य श्लोक में भी गीताकार ने मोह (अविद्या-अज्ञान) और आसक्ति (तृष्णा, राग या लोभ) को नरक का कारण बताकर उनके बन्धकत्व को स्पष्ट किया है। वहाँ कहा गया है कि मोह-जाल में आवृत्त और काम-भोगों में आसक्त पुरुष अपवित्र नरकों में गिरते हैं.28 अर्थात् मोह और आसक्ति पतन के कारण हैं। सातवें अध्याय में गीता जैन-विचारणा के समान संसार (अर्थात् बन्धन) के तीन कारणों की व्याख्या करती है। वहाँ गीता कहती है कि इच्छा (राग), द्वेष और तजनित मोह से सभी प्राणी अज्ञानी बन संसार के बन्धन को प्राप्त होते हैं। यहाँ गीताकार राग, द्वेष और मोह-बन्धन के इन तीन कारणों की व्याख्या ही नहीं करता, वरन् इच्छा -द्वेष से उत्पन्न मोह कहकर जैनदर्शन के समान राग, द्वेष और मोह की परस्पर-सापेक्षता को भी अभिव्यक्त कर देता है। सांख्ययोग-दर्शन में बन्धनका कारण ____योगसूत्र में बन्धन या क्लेश के पाँच कारण माने गए हैं- 1. अविद्या, 2. अस्मिता (अहंकार), 3. राग (आसक्ति), 4. द्वेष और 5. अभिनिवेश (मृत्यु का भय)। इनमें भी अविद्या ही प्रमुख कारण है, क्योंकि शेष चारों अविद्या पर आधारित हैं। जैनदर्शन के राग, द्वेष और मोह (अविद्या) इसमें भी स्वीकृत हैं। न्याय-दर्शन में बन्धन का कारण न्याय-दर्शन में जैन-दर्शन के समान बन्धन के मूलभूत तीन कारण माने गए हैं1.राग, 2. द्वेष और 3. मोह। राग (आसक्ति) के भीतर काम, मत्सर, स्पृहा, तृष्णा, लोभ, माया तथा दम्भ का समावेश होता है तथा द्वेष में क्रोध, ईर्ष्या, असूया, द्रोह (हिंसा) तथा अमर्ष का।मोह (अज्ञान) में मिथ्याज्ञान, संशय, मान और प्रमाद होते हैं। राग और द्वेष मोह अथवा अज्ञान से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार, तुलनात्मक-दृष्टि से विचार किया जाए, तो सभी विचारणाओं में अविद्या (मोह) और राग-द्वेषही बन्धन, दुःख या क्लेश के कारण हैं। द्वेष भी राग के कारण होता है, अत: मूलत: आसक्ति (राग) और अविद्या (मोह) ही बन्धन के कारण हैं, जिनकी स्थिति परस्पर सापेक्ष-भाव से है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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