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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
7. अदत्तादान-क्रिया-चौर्य-कर्म करना।
8. अध्यात्म-क्रिया- बाह्य निमित्त के अभाव में होने वाले मनोविकार, अर्थात् बिना समुचित कारण के मन में होने वाला क्रोध आदि दुर्भाव।
9. मान-क्रिया- अपनी प्रशंसा या घमण्ड करना। 10. मित्र-क्रिया-प्रियजनों,पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू, पत्नी आदि को कठोर दण्ड देना। 11. माया-क्रिया- कपट करना, ढोंग करना। 12. लोभ-क्रिया- लोभ करना।
. 13. ईर्यापथिकी-क्रिया-अप्रमत्त, विवेकी एवं संयमी व्यक्ति कीगमनागमन एवं आहार-विहार की क्रिया।
वैसे, मूलभूत आस्रव योग (क्रिया) है, लेकिन यह समग्र क्रिया-व्यापार भी स्वत: प्रसूत नहीं है। उसके भी प्रेरक सूत्र हैं, जिन्हें आस्रव-द्वार या बन्ध-हेतु कहा गया है। समवायांग, ऋषिभाषित एवं तत्त्वार्थसूत्र में इनकी संख्या 5 मानी गई है-(1) मिथ्यात्व, (2) अविरति, (3) प्रमाद, (4) कषाय और (5) योग (क्रिया)।" समयसार में इनमें से 4 का उल्लेख मिलता है, उसमें प्रमाद का उल्लेख नहीं है।12 उपर्युक्त पाँच प्रमुख आम्रव-द्वार या बन्धहेतुओं को पुन: अनेक भेद-प्रभेदों में वर्गीकृत किया गया है। यहाँ केवल नाम-निर्देश करना पर्याप्त है। पाँच आसव-द्वारों या बन्ध-हेतुओं के अवान्तर-भेद इस प्रकार हैं
1. मिथ्यात्व- मिथ्यात्व अयथार्थ दृष्टिकोण है, जो पाँच प्रकार का है- (1) एकान्त, (2) विपरीत, (3) विनय, (4) संशय और (5) अज्ञान।
2. अविरति- यह अमर्यादित एंव असंयमित जीवन-प्रणाली है। इसके भी पाँच भेद हैं- (1) हिंसा, (2) असत्य, (3) स्तेयवृत्ति, (4) मैथुन (काम-वासना) और (5) परिग्रह (आसक्ति)।
3. प्रमाद- सामान्यतया, समय का अनुपयोग या दुरुपयोग प्रमाद है। लक्ष्योन्मुख प्रयास के स्थान पर लक्ष्य-विमुख प्रयास समय का दुरुपयोग है, जबकि प्रयास का अभाव अनुपयोग है। वस्तुतः, प्रमाद आत्म-चेतना का अभाव है। प्रमाद पाँच प्रकार का माना गया है
(क) विकथा- जीवन के लक्ष्य (साध्य) और उसके साधना-मार्ग पर विचार नहीं करते हुए अनावश्यक चर्चाएँ करना। विकथाएँ चार प्रकार की हैं- (1) राज्य-सम्बन्धी (2) भोजन-सम्बन्धी, (3) स्त्रियों के रूप-सौन्दर्य-सम्बन्धी, और (4) देश-सम्बन्धी। विकथा समय का दुरुपयोग है। . (ख) कषाय- क्रोध, मान, माया और लोभ। इनकी उपस्थिति में आत्मचेतना कुण्ठित होती है, अत: ये भी प्रमाद हैं।
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