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________________ 8. बौद्ध आचारदर्शन और निर्जरा 9. गीता का दृष्टिकोण 10. निष्कर्ष 1. जीवन - लक्ष्य की शोध में 2. जीवन क्या है ? 3. नैतिकता का साध्य -35 (अ) संघर्ष का निराकरण एवं समत्व का संस्थापन 435/1. मनोवृत्तियों का आन्तरिक संघर्ष 435 / 2. व्यक्ति की आन्तरिक अभिरुचियों और बाह्य परिस्थितियों का संघर्ष 435 / 3. बाह्य वातावरण के मध्य होने वाला संघर्ष 435 / (ब) आत्म- पूर्णता 439/ (स) आत्म-साक्षात्कार 442 / जैन- दृष्टिकोण और आत्म-साक्षात्कार 443/ 4. जैन, बौद्ध और गीता के आचार- दर्शनों में परम साध्य जैनदर्शन में मुक्ति के दो रूप 444 / बौद्ध परम्परा में दो प्रकार का निर्वाण 444 / वैदिक परम्परा में दो प्रकार की मुक्ति 444 / जैनदर्शन में वीतराग का जीवनादर्श 5. 6. बौद्धदर्शन में अर्हत् का जीवनादर्श 7. गीता में स्थितप्रज्ञ का जीवनादर्श 8. शांकरवेदान्त में जीवन्मुक्त के लक्षण 9. जैनदर्शन में मोक्ष का स्वरूप 10. बौद्धदर्शन में निर्वाण का स्वरूप नैतिक - जीवन का साध्य (मोक्ष) 433 433 435 (अ) भावात्मक दृष्टिकोण 449/ (ब) अभावात्मक दृष्टिकोण 450/ (स) अनिर्वचनीय दृष्टिकोण 451 / Jain Education International 1. वैभाषिक - सम्प्रदाय 452 / 2. सौत्रान्तिक-सम्प्रदाय 453 / 3. विज्ञानवाद (योगाचार) 453 / 4. शून्यवाद 454 / निर्वाणभावात्मक तथ्य 455 / निर्वाण-अभावात्मक तथ्य 456/ निर्वाण की अनिर्वचनीयता 457 / 429 430 431 For Private & Personal Use Only 443 445 446 447 447 448 451 www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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