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________________ कर्म-सिद्धान्त 349 प्रकृति के द्वैत को स्वीकार करते हुए भी अपने कूटस्थ-आत्मवाद के कारण इनके पारस्परिक-सम्बन्ध को ठीक प्रकार से नहीं समझा पाया। जैन-दर्शन वस्तुवादी एवं परिणामवादी है और इसलिए वह जड़-चेतन के मध्य वास्तविक सम्बन्ध स्वीकार करने में कठिनाई अनुभव नहीं करता। वह चेतना पर होने वाले जड़ के प्रभाव को स्वीकार करता है। वह कहता है कि अनुभव हमें यह बताता है कि जड़ मादक पदार्थों का प्रभाव चेतना पर पड़ता ही है, अत: यह मानने में कोई आपत्ति नहीं है कि जड़ कर्म-वर्गणाओं का प्रभाव चेतन-आत्मा पर पड़ता है। संसार का अर्थ जड़ और चेतन का वास्तविक सम्बन्ध है। 10. कर्म की मूर्तता जैन-दर्शन के अनुसार द्रव्य-कर्म पुद्गलजन्य है, अत: मूर्त (भौतिक) है। कारणसे जिस प्रकार कार्य का अनुमान होता है, उसी प्रकार कार्य से भी कारण का अनुमान होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार शरीर आदि कार्य मूर्त हैं, तो उनका कारण कर्म भी मूर्त ही होना चाहिए। कर्म की मूर्त्तता सिद्ध करने के लिए कुछ तर्क इस प्रकार दिए जा सकते हैं- कर्म मूर्त है, क्योंकि उसके सम्बन्ध से सुख-दु:ख आदिका ज्ञान होता है, जैसे भोजन से। कर्म मूर्त है, क्योंकि उसके सम्बन्ध से वेदना होती है, जैसे अग्नि से। यदि कर्म अमूर्त होता, तो उसके कारण सुख-दुःखादि की वेदना सम्भव नहीं होती। मूर्तकाअमूर्त प्रभाव यदिकर्म मूर्त है, तो फिर वह अमूर्त आत्मापर अपना प्रभाव कैसे डालता है ? जिस प्रकार वायु और अग्नि का अमूर्त आकाश पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता, उसी प्रकार अमूर्त आत्मा पर भी मूर्त कर्म का कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए? इसका उत्तर यही है कि जैसे अमूर्त ज्ञानादिगुणों पर मूर्त मदिरादि का प्रभाव पड़ता है, वैसे ही अमूर्त जीव पर भीमूर्त कर्म का प्रभाव पड़ता है। उक्त प्रश्न का एक दूसरा तर्कसंगत एवं निर्दोष समाधान यह भी है कि कर्म के सम्बन्ध में आत्मा कथंचित् मूर्त भी है। क्योंकि संसारीआत्मा अनादिकाल से कर्म-सन्तति से सम्बद्ध है, इस अपेक्षा से आत्मा सर्वथा अमूर्त नहीं है, अपितु कर्मसम्बद्ध होने के कारण स्वरूपत: अमूर्त होते हुए भी वस्तुत: कथंचित्-मूर्त है। इस दृष्टि से भी आत्मा पर मूर्त कर्म का उपघात, अनुग्रह और प्रभाव पड़ता है। वस्तुत:, जिस पर कर्मसिद्धान्त का नियम लागू होता है, वह व्यक्तित्व अमूर्त नहीं है। हमारा वर्तमान व्यक्तित्व शरीर (भौतिक) और आत्मा (अभौतिक) का एक विशिष्ट संयोग है। शरीरी-आत्मा भौतिक-तथ्यों से अप्रभावित नहीं रह सकता। जब तक आत्मा शरीर (कर्म-शरीर) के बन्धन से मुक्त नहीं हो जाती, तब तक वह अपने को भौतिक-प्रभावों से पूर्णतया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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