________________
-33
399
399
सांख्ययोगदर्शन में बन्धन का कारण 398/न्यायदर्शन में बन्धन
का कारण 398/ 3. बन्धन के कारणों का बन्ध के चार प्रकारों से सम्बन्ध 4. अष्टकर्म और उनके कारण
1. ज्ञानावरणीय कर्म 400/ ज्ञानावरणीय कर्म के बन्धन के कारण 400/1. प्रदोष 400/2. निह्नव 400/3. अन्तराय 400/4. मात्सर्य 400/5. असादना 400/6. उपघात 400/ज्ञानावरणीय कर्म का विपाक 400/1. मतिज्ञानावरण 400/2. श्रुतिज्ञानावरण 400/3. अवधिज्ञानावरण 400/ 4. मन:पर्याय ज्ञानावरण 400/5. केवल ज्ञानावरण 400/ 2. दर्शनावरणीय कर्म 401/ दर्शनावरणीय कर्म के बन्ध के कारण 401/ दर्शनावरणीय कर्म का विपाक 401/1. चक्षुदर्शनावरण 401/ 2. अचक्षुदर्शनावरण 401/3. अवधिदर्शनावरण 401/4. केवलदर्शनावरण 401/5. निद्रा 401/6. निद्रानिद्रा 401/7. प्रचला 401/8. स्त्यानगृद्धि 401/ 3. वेदनीय कर्म 401/ सातावेदनीय कर्म के कारण 401/ सातावेदनीय कर्म का विपाक 402/ असातावेदनीय कर्म के कारण 402/ 4. मोहनीय कर्म 402/मोहनीय कर्म के बन्ध के कारण 403/ (अ) दर्शनमोह 404/(ब) चारित्रमोह 404/ 5. आयुष्यकर्म 404/आयुष्य-कर्म के बन्ध के कारण 405/ (अ) नारकीय जीवन की प्राप्ति के चार कारण 405/(ब) पाशविक जीवन की प्राप्ति के चार कारण 405/ (स) मानवजीवन की प्राप्ति के चार कारण 405/(द) दैवीय-जीवन की प्राप्ति के चार कारण 405/ आकस्मिकमरण 405/ 6. नामकर्म 406/ शुभनामकर्म के बन्ध के कारण 406/ शुभनाम कर्म का विपाक 406/ अशुभनामकर्म के कारण 406/ अशुभनामकर्म का विपाक 406/ 7. गोत्रकर्म 407/ उच्च गोत्र एवं नीच गोत्र के कर्म-बन्ध के कारण 407/ गोत्रकर्म का विपाक 407/
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org