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पुण्य या कुशल कर्मों का वर्गीकरण 370/ 4. पुण्य और पाप (शुभ और अशुभ) की कसौटी 5. सामाजिक जीवन में आचरण के शुभत्व का आधार
जैनदर्शन का दृष्टिकोण 374/बौद्धदर्शन का दृष्टिकोण 375/
हिन्दूधर्म का दृष्टिकोण 375/ पाश्चात्य-दृष्टिकोण 375/ 6. शुभ और अशुभसे शुद्ध की ओर
जैन-दृष्टिकोण 376/ बौख-दृष्टिकोण 377/ गीता का
दृष्टिकोण 378/ पाश्चात्य-दृष्टिकोण 378/ 7. शुभकर्म (अकर्म) 8. जैनदर्शन में कर्म-अकर्म विचार 9. बौद्धदर्शन में कर्म-अकर्म का विचार
1. वे कर्म, जो कृत (सम्पादित) नहीं हैं, लेकिन उपचित (फलप्रदाता) हैं 381/2. वे कर्म, जो कृत भी हैं और उपचित हैं 382/3. वे कर्म, जो कृत है, लेकिन उपचित नहीं हैं 382/
4.वे कर्म, बोकृत भी नहीं हैं और उपचित भी नहीं हैं 382/ 10. गीता में कर्म-अकर्म कास्वरूप
1. कर्म 382/2. विकर्म 382/3. अकर्म 383/ 11. अकर्म कीअर्थ-विवक्षा पर तुलनात्मक दृष्टि से विचार
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12 कर्म-बन्ध के कारण, स्वरूप एवं प्रक्रिया 1. बधन और दुःख
1. प्रकृतिबन्ध 390/2. प्रदेशबन्ध 390/ 3. स्थितिबन्ध
390/4. अनुभागबन्ध 390/ 2. बन्धन का कारण-आसव
जैन-दृष्टिकोण 390/1. मिथ्यात्व 394/2. अविरति 394/. 3. प्रमाद 394/(क) विकथा 394/ (ख) कषाय 394/ (ग) राग 395/(घ) विषय-सेवन 395/(ङ) निद्रा 395/ 4. कषाय 395/5. योग 395/ बौद्धदर्शन में बन्धन (दु:ख) का कारण 395/ गीता की दृष्टि में बन्धन का कारण 397/
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