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________________ -31 349 350 352 354 10. कर्म की मूर्तता मूर्त का अमूर्त प्रभाव 349/ मूर्त का अमूर्त से सम्बन्ध 350/ 11. कर्म और विपाक की परम्परा जैन-दृष्टिकोण 351/ बौद्ध-दृष्टिकोण 351/ 12. कर्मफल-संविभाग जैन-दृष्टिकोण 352/ बौद्ध-दृष्टिकोण 352/ गीता एवं हिन्दू परम्परा का दृष्टिकोण 353/ तुलना एवं समीक्षा 353/ 13. जैन-दर्शन में कर्म कीअवस्था 1. बन्ध 354/2. संक्रमण 355/3. उद्वर्तना 355/ 4. अपवर्तना 356/5. सत्ता 356/6. उदय 356/7. उदीरणा 356/8. उपशमन 356/9. निधत्ति 356/10. निकाचना 357/ कर्म की अवस्थाओं पर बौद्धधर्म की दृष्टि से विचार एवं तुलना 357/ कर्म की अवस्थाओं पर हिन्दू आचारदर्शन की दृष्टि से विचार एवं तुलना 357/ 14. कर्म-विपाक की नियतता और अनियतता । जैन-दृष्टिकोण 358/ बौद्ध-दृष्टिकोण 359/ नियतविपाक कर्म 359/ अनियतविपाक-कर्म 360/ गीता का दृष्टिकोण ___ 360/ निष्कर्ष 361/ 15. कर्म-सिद्धान्त पर आक्षेप और उनका प्रत्युत्तर कर्म-सिद्धान्त पर मेकेंजी के आक्षेप और उनके प्रत्युत्तर 362/ 358 361 11 कर्म का अशुभत्व, शुभत्व एवं शुद्धत्व 1. तीन प्रकार के कर्म 367 2. अशुभ या पापकर्म पाप या अकुशल कर्मों का वर्गीकरण 368/ जैनदृष्टिकोण 368/ बौद्ध-दृष्टिकोण 368/ कायिक-पाप 368/ वाचिकपाप 368/ मानसिक-पाप 369/ गीता का दृष्टिकोण 369/ पाप के कारण 369/ 3. पुण्य (कुशल कर्म) 369 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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