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10. कर्म की मूर्तता
मूर्त का अमूर्त प्रभाव 349/ मूर्त का अमूर्त से सम्बन्ध 350/ 11. कर्म और विपाक की परम्परा
जैन-दृष्टिकोण 351/ बौद्ध-दृष्टिकोण 351/ 12. कर्मफल-संविभाग
जैन-दृष्टिकोण 352/ बौद्ध-दृष्टिकोण 352/ गीता एवं हिन्दू
परम्परा का दृष्टिकोण 353/ तुलना एवं समीक्षा 353/ 13. जैन-दर्शन में कर्म कीअवस्था
1. बन्ध 354/2. संक्रमण 355/3. उद्वर्तना 355/ 4. अपवर्तना 356/5. सत्ता 356/6. उदय 356/7. उदीरणा 356/8. उपशमन 356/9. निधत्ति 356/10. निकाचना 357/ कर्म की अवस्थाओं पर बौद्धधर्म की दृष्टि से विचार एवं तुलना 357/ कर्म की अवस्थाओं पर हिन्दू आचारदर्शन की
दृष्टि से विचार एवं तुलना 357/ 14. कर्म-विपाक की नियतता और अनियतता ।
जैन-दृष्टिकोण 358/ बौद्ध-दृष्टिकोण 359/ नियतविपाक
कर्म 359/ अनियतविपाक-कर्म 360/ गीता का दृष्टिकोण
___ 360/ निष्कर्ष 361/ 15. कर्म-सिद्धान्त पर आक्षेप और उनका प्रत्युत्तर
कर्म-सिद्धान्त पर मेकेंजी के आक्षेप और उनके प्रत्युत्तर 362/
358
361
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कर्म का अशुभत्व, शुभत्व एवं शुद्धत्व 1. तीन प्रकार के कर्म
367 2. अशुभ या पापकर्म
पाप या अकुशल कर्मों का वर्गीकरण 368/ जैनदृष्टिकोण 368/ बौद्ध-दृष्टिकोण 368/ कायिक-पाप 368/ वाचिकपाप 368/ मानसिक-पाप 369/ गीता का दृष्टिकोण 369/
पाप के कारण 369/ 3. पुण्य (कुशल कर्म)
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