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11. सम्यक् जीवन-दृष्टि के लिए दोनों दृष्टिकोण अपेक्षित 12. कर्म-नियम और आत्मशक्ति 13. आत्म-निर्धारणवाद
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कर्म-सिद्धान्त 1. नैतिक विचारणा में कर्म-सिद्धान्त का स्थान 2. कर्म-सिद्धान्त की मौलिक स्वीकृतियाँ और फलितार्थ
संक्षेप में इन आधारभूत मान्यताओं के फलितार्थ निम्नलिखित हैं
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3. कर्म-सिद्धान्त का उद्भव 4. कारण सम्बन्धी विभिन्न मान्यताएँ
1. कालवाद 334/ 2. स्वभाववाद 334/3. नियतिवाद 334/4. यदृच्छावाद 335/5. महाभूतवाद 335/6.
प्रकृतिवाद 335/7. ईश्वरवाद 335/ 5. औपनिषदिक-दृष्टिकोण
गीता का दृष्टिकोण 336/ बौद्ध-दृष्टिकोण 336/ जैन
दृष्टिकोण 337/ 6. जैनदर्शन का समन्वयवादी दृष्टिकोण
गीता के द्वारा जैन-दृष्टिकोण का समर्थन 339/ 7. 'कर्म' शब्द काअर्थ
गीता में कर्म शब्द का अर्थ 339/ बौद्धदर्शन में कर्म का अर्थ
340/ जैन -दर्शन में कर्म शब्द का अर्थ 341/ 8. कर्म का भौतिक स्वरूप
द्रव्य-कर्म और भाव-कर्म 342/ द्रव्य-कर्म और भाव-कर्म का सम्बन्ध 344/ (अ) बौद्ध-दृष्टिकोण एवं उसकी समीक्षा 344/(ब) सांख्यदर्शन और शांकर-वेदान्त के दृष्टिकोण की समीक्षा 346/ गीता का दृष्टिकोण 346/ एक समग्र दृष्टिकोण
आवश्यक 347/ 9. भौतिक और अभौतिक पक्षों की पारस्परिक प्रभावकता
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