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________________ 310 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन पुरुषार्थ-क्षमता को स्वीकार करना आवश्यक है। यदि व्यक्ति में स्वतन्त्र रूप से कुछ करने कीक्षमता नहीं है, तो फिर उससे नैतिक-प्रगति की अपेक्षा करना व्यर्थ है, साथ ही नैतिकउत्तरदायित्व के लिए भी यह आवश्यक है कि चुनावव्यक्ति ने स्वयं किया हो, या वह चुनाव के लिए बाध्य नहीं किया गया हो और इस अर्थ में कर्म स्वयं उसका हो, लेकिन नियतिवाद इसे स्वीकार नहीं करता और इस प्रकार नैतिकता की समुचित व्याख्या करने में असफल सिद्ध होता है। 4. यदृच्छावाद भारतीय-साहित्य में नियतिवाद का विरोधी सिद्धान्त यदृच्छावाद है। श्वेताश्वतर उपनिषद् और गीता में यदृच्छावाद का उल्लेख है। यदृच्छावाद नियतिवाद का विरोधी है। वह मानवीय-संकल्प एवं वरण (चयन) को कार्य-कारण-नियम से परे एवं अहेतुक मानता है। यदृच्छाशब्द का अर्थ आकस्मिकता यासंयोग है। यदृच्छा भवितव्यता से इस अर्थ में भिन्न है कि भवितव्यता में घटनाओं को पूर्वनियत माना गया है और यदृच्छावाद में अनियत माना गया है। यदृच्छावाद में संयोग ही महत्वपूर्ण है, वह प्रत्येक घटना को एक संयोग के रूप में देखता है और उस संयोग को आकस्मिक मानता है। यदृच्छावाद एक प्रकार से अतन्त्रतावाद है। पाश्चात्य नैतिक-चिन्तन के सन्दर्भ में यदृच्छावाद का विवेचन इच्छा-स्वातन्त्र्य-सिद्धान्त के एक अंग के रूप में किया जा सकता है, क्योंकि यह मानता है कि इच्छाओं का कोई हेतु नहीं होता, वे अहेतुक हैं। यदृच्छावाद कानैतिक-मूल्य यदृच्छावाद का इच्छा-स्वातन्त्र्य के रूप में कुछ मूल्य अवश्य हो सकता है। यदच्छावादी नैतिक-उत्तरदायित्व की व्याख्या का प्रयत्न करता है, क्योंकि उसके अनुसार कार्य की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। ब्रैडले ने उत्तरदायित्व की समस्या पर विचार करते हुए कहा है कि नैतिक-जीवन में व्यक्ति को उत्तरदायी बनाने की दृष्टि से नियतिवाद और इच्छा-स्वातन्त्र्य-दोनों का स्थान है। यद्यपि पूर्व संस्कारों (पूर्वकर्म) को वर्तमान चरित्र के निर्माण का कारण माना गया है, तथापि पूर्व संस्कारों को ही सब कुछ मानने पर हम नियतिवाद के निकट होंगे। वास्तव में, यदृच्छा का सिद्धान्त कारण का अभाव नहीं, वरन् कारण के ऊपर कर्ता की स्वतन्त्र इच्छा का स्वीकरण है और नैतिक-उत्तरदायित्व एवं नैतिक-आदेश की दृष्टि से कर्ता की इच्छा की स्वतन्त्रता का अपना मूल्य है। यदृच्छावाद के पक्ष में युक्तियाँ 1. वरण का अर्थ- यदृच्छावादी जब किसी इच्छा का वरण करता है और कोई संकल्प करता है, तब वह पूर्ण स्वतन्त्र है। उस पर किसी अन्य व्यक्ति या वस्तु का अंकुश नहीं होता। वह आन्तरिक प्रेरणाओं और इच्छाओं से भी स्वतन्त्र है, क्योंकि इनके विपरीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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