SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 310
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 308 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन 3. कार्य-कारण नियम-चूँकि कोई भी घटना अकारण नहीं होती, इसलिए संसार में कोई वस्तु कारणहीन नहीं है, अत: संकल्प भी स्वतन्त्र नहीं है। ___4. शक्ति-नित्यता का नियम-विश्व में शक्ति का परिणाम सदा समान रहता है, किन्तु संकल्प-स्वातन्त्र्य में नूतन भौतिक-शक्ति की सृष्टि तथा विश्व में शक्ति के निश्चित परिणाम की वृद्धि गर्भित है। __5. विश्व-विषयक जड़वादी परिकल्पना- मन मस्तिष्क का उपविकार है और इसलिए उसमें कारण-शक्ति और स्वतन्त्रता नहीं। 6. विश्व की सर्वेश्वरवादी परिकल्पना- इसके अनुसार ईश्वर ही एकमात्र सत्य है तथा मनुष्य के मन की अपनी स्वतन्त्र सत्ता और फलस्वरूप संकल्प-स्वातन्त्र्य नहीं हैं। 7.ईश्वर का पूर्वज्ञान- मनुष्य के भावी कर्मों को पहले से जानने के कारण ईश्वर उन्हें पहले ही निर्धारित कर चुका है।26 नियतिवाद की व्यावहारिक-जीवन में उपयोगिता नियतिवाद की व्यावहारिक-जीवन में क्या उपयोगिता है, यह बात महाभारत एवं पाश्चात्य-विचारक स्पीनोजा के कथनों से स्पष्ट हो जाती है। महाभारत के शान्तिपर्व में नियतिवादी-विचार की उपयोगिता का स्पष्ट निर्देश है 1.सभीभावस्वभाव से उत्पन्न होते हैं, जो इस बात को निश्चित रूप से जानलेता है, उसका दर्प या अभिमान क्या बिगाड़ सकता है ?” अर्थात् नियतिवाद को मानने पर दर्प या अभिमान नहीं होता। 2. मुझे जो अवस्था प्राप्त हुई, ऐसी ही होनहार (भवितव्यता) थी, जो इसे जान लेता है, वह कभी भी मोह में नहीं पड़ता।28 3.जो वस्तु नहीं मिलने वाली होती है, उसको कोई मनुष्य मन्त्र, बल, पराक्रम, बुद्धि, पुरुषार्थ, शील, सदाचार और धन-सम्पत्ति से भी नहीं पा सकता, फिर उसकी अनुपलब्धि के लिए शोक क्यों किया जाए ? इस प्रकार नियतिवाद को मानने पर कठिन परिस्थितियों में भी कोई शक नहीं होता। 4. सभी कुछ काल के अधीन है, इस प्रकार जगत् की नियतता जाननेवाले को क्या व्यथाहो सकती है ? वह तो लाभ-अलाभ या सुख-दुःख में भी समभाव रखता है। इस प्रकार, नियतिवाद दुःखद अवस्थाओं में भी धैर्य एवं समभाव का पाठ पढ़ाकर तथा सुखद अवस्थाओं में अहंकार और कर्तृत्वभाव के दोषों से बचाकर, पूर्णतया निष्काम जीवन जीना सिखाता है। स्पीनोजा ने ईश्वरवादी नियतिवाद के निम्न लाभ बताए हैं,1 जिनका महाभारत की विचारणा से काफी साम्य है। 1. यह हमें सर्वथा ईश्वरीय-विधान के अनुसार चलना सिखाता है और ईश्वरीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy