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आत्मा की स्वतन्त्रता
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वैज्ञानिक कारणतावादी यान्त्रिक-धारणा में मनुष्य के समग्र संकल्प एवं कर्म परिवेश और वंशानुक्रम के परिणाम होते हैं, उन्हीं से नियत होते हैं और मानवीय-स्वतन्त्रता समाप्त हो जाती है। मनुष्य मानवीय-शरीर के रूप में एक ऐसा आत्मचेतन यन्त्र होता है, जो परिवेशरूपी शक्ति से प्रभावित एवं चालित होता है। संकल्प एवं कर्म उसके अपने नहीं होते, वरन् प्रकृति की नियामक-शक्ति का परिणाम होते हैं। इस समग्र विचारणा में कारणतावादी धारणा पर ही अधिक जोर दिया गया है। पाश्चात्य-चिन्तन में इसके अनेक रूप हैं, जिनमें प्रमुख हैं- वाटसन का परिस्थितिवादी-नियतिवाद, आर. फ्राड का मानसिक-नियतिवाद। पश्चिम में नियतिवादी विचारकों की एक लम्बी परम्परा है, जिसमें स्पीनोजा, ह्यूम, बेन्थम, मिल, कडवर्थ आदि उल्लेखनीय हैं। कारणतावादीनियतिवाद भी पुरुषार्थ एवं संकल्प-स्वातन्त्र्य की धारणा का उतना ही विरोधी सिद्ध होता है, जितना संयोगवादया यदृच्छावाद। वस्तुत:, किसीभीएकान्तिक-विचारप्रणाली में, चाहे वह कारणता की हो या अकारणता की, मानवीय-पुरुषार्थ का यथार्थ मूल्यांकन नहीं हो सकता; नैतिक-जीवन के लिए दोनों आवश्यक हैं, लेकिन अपने एकान्तिक रूप में दोनों ही नैतिक-जीवन को असम्भव बना देते हैं। यही कारण है कि जैन-दार्शनिक एकान्तिक-मान्यता को असम्यक् मानते हैं। नियतिवाद के सामान्य लाभ
नियतिवाद के सम्बन्ध में सभी भारतीय एवं पाश्चात्य-दृष्टिकोणों की नैतिकसमीक्षा करने के लिए यह आवश्यक है कि उनके गुण-दोषों का सम्यक् मूल्यांकन कर लिया जाए। नियतिवादी-विचारक अपने सिद्धान्त के समर्थन में कहते हैं कि (1) नियतिवाद संकल्प की सम्यक् व्याख्या प्रस्तुत करता है। वह यह बताता है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व तथा बलवती प्रेरणाएँ ही उसके संकल्प के मूल में हैं। संकल्प संयोगजन्य (Casual) नहीं है, वरन् उसके चरित्र से ही निर्गमित है, अत: वह उसके लिए उत्तरदायी है। (2) यदृच्छावाद में संकल्पसंयोगजन्य (आकस्मिक) होता है, अत: उसमें उत्तरदायित्व नहीं आता, जबकि नियतिवाद में संकल्प चरित्र का परिणाम होता है, अत: वह उत्तरदायित्व की सम्यक् व्याख्या करता है। नियतिवाद अपने सिद्धान्त कासमर्थन निम्नतकों के आधार पर करता है
___ 1.संकल्प कामनोविज्ञान- इसके अनुसार संकल्पस्वतन्त्र नहीं है, बल्कि प्रबलतम प्रवर्तन के द्वारा निर्धारित होता है।
2. मानव-स्वभाव की भविष्यवाणी की सम्भावना-यदि मानव-कर्म पूर्वपरिस्थितियों के द्वारा निर्धारित न होकर पूर्णतया स्वतन्त्र होते, तो उनका पूर्वज्ञान सम्भव न होता, जैसा कि साधारणत: होता है।
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