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________________ 306 जैन. बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन 6.सर्वज्ञतावाद ___ सर्वज्ञता की धारणा श्रमण आर वादक-दाना परम्पराओं की प्राचीन धारणा है। सर्वज्ञतावाद यह मानता है कि सर्वज्ञ देशऔर काल की सीमाओं से ऊपर उठकर कालातीत दृष्टि से सम्पन्न होता है और इस कारण उसे भूत के साथ-साथ भविष्य का भी पूर्वज्ञान होता है, लेकिन जो ज्ञात है, उसमें सम्भावना, संयोग या अनियतता नहीं हो सकती। नियत घटनाओं का पूर्वज्ञान हो सकता है, अनियत घटनाओं का नहीं। यदि सर्वज्ञको भविष्य का पूर्वज्ञान होता है और वह यथार्थ भविष्यवाणी कर सकता है, तो इसका अर्थ है कि भविष्य की समस्त घटनाएँ नियत हैं। भविष्यदर्शन और पूर्वज्ञान में पूर्वनिर्धारण गर्भित है। यदि भविष्य की सभी घटनाएँ पूर्वनियत हैं, तो वैयक्तिक-स्वातन्त्र्य और पुरुषार्थ का क्या अर्थ है? यदि जीवन की समस्त घटनाएँ पूर्वनियत हैं, तो फिर नैतिक-आदर्श, वैयक्तिकस्वातन्त्र्य और पुरुषार्थ का कोई अर्थ नहीं रहता।सर्वज्ञ के पूर्वज्ञान में कर्म का चयन निश्चित होता है, उसमें कोई अन्य विकल्प नहीं होता; तब वह चयन चयन ही नहीं होगा और चयन नहीं है, तो उत्तरदायित्व भी नहीं होगा, अर्थात् सर्वज्ञतावाद अनिवार्यत: नियतिवाद की ओर ले जाता है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि उपर्युक्त छ: प्रकार के नियतिवाद प्राचीन भारतीयचिन्तन में उपलब्ध हैं, लेकिन पाश्चात्य-आचारदर्शन में जो नियतिवाद स्वीकृत है, उसका आधार इनसे भिन्न है। यह वैज्ञानिक-जगत् के कारणता के नियम पर आधारित है। इस प्रसंग में उस पर भी थोड़ी चर्चा कर लेना आवश्यक है। 3. पाश्चात्य-दर्शन में नियतिवाद की धारणा पाश्चात्य-आचारदर्शन में नियतिवाद की धारणा वैज्ञानिक कारण-सिद्धान्त पर आधारित है। उसे हम वैज्ञानिक-नियतिवाद' कह सकते हैं। यद्यपि वैज्ञानिक-नियतिवाद घटनाओं को पूर्वनियत तो नहीं मानता, लेकिन जब हम कारणता के नियमों को ही जगत् का एकमात्र सत्य स्वीकार कर लेते हैं, तो भी हम नियतिवाद के घेरे में आबद्ध हो जाते हैं। यदि सभी अनुवर्ती घटनाएँ अपनी पूर्ववर्ती घटनाओं से कारणता के नियम के आधार पर बँधी हुई हैं, तो फिर वैयक्तिक आचरण में सकंल्प-स्वातन्त्र्य का क्या स्थान रह जाएगा? पाश्चात्य-आचारदर्शन में इसी कारण-सिद्धान्त के आधार पर निर्धारणवाद का विकास हुआ है। पाश्चात्य-दर्शन के अनेक विद्वानों ने प्रकृत-विज्ञानों के प्रभाव में आकर कारणता के नियम को पूर्णरूप से मानवीय-प्रकृति पर भी थोपने का प्रयास किया और परिणाम यह हुआ कि वे नियतिवाद के दलदल में फँस गए। इन्होंने यह मान लिया कि मनुष्य एक आत्मचेतन प्राणी तो अवश्य है, लेकिन उसके समस्तसंकल्प एवं संकल्पजन्य कर्मभौतिकपरिस्थितियों और शारीरिक तथा मानसिक-दशाओं से ठीक उसी प्रकार नियत होते हैं, जिस प्रकार पारस्परिक आकर्षण और विकर्षण से ग्रहों की गति नियत होती है। इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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