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________________ 294 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन पूर्णता प्राप्त करेगी तथा दिक्-काल की मर्यादाओं का पूर्ण उल्लंघन कर सकेगी। जैन-दर्शन के अनुसार भी जब तक आत्मा पूर्ण ज्ञान को प्राप्त नहीं कर लेता है, वह पुन:-पुन: जन्म धारण करता है। (ब) नैतिक-आदर्श की पूर्णताया चरित्र के पूर्ण विकास के लिए- मार्टिन्यू का कहना है कि नैतिक-आदर्श असीम होता है। यह वर्तमान जीवन में पूर्णत: प्राप्त नहीं किया जा सकता। नैतिक-प्रगति जितनी अधिक होती है, नैतिक-आदर्श भी उतना ही अधिक उच्च होता जाता है, अत: नैतिक-आदर्श की प्राप्ति के लिए अनश्वर अथवा अमर जीवन की आवश्यकता होती है। कांट इसका वर्णन इस प्रकार करता है-इच्छा एवं कर्तव्य के मध्य संघर्षों को कभी भी पूर्णत: सीमित जीवन में समाप्त नहीं किया जा सकता, अत: वर्तमान जीवन के ही क्रम में एक भावी जीवन भी होना चाहिए, जहाँ मानवीय-आत्मा का व्यक्तित्व जीवित रहकर इच्छा एवं कर्त्तव्य के मध्य सामंजस्य स्थापित कर सके। जेम्स सेथ ने इस नैतिक-दलील को इस प्रकार दिया है- नैतिक-आदर्श अपरिछिन्न है, सीमित काल में उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता, इसलिए आत्मा का अस्तित्व अनन्त-काल तक रहना चाहिए, अर्थात् आत्माको अमर होना चाहिए। मनुष्य के लिए जीवन का लक्ष्य असीम है। इस छोटे-से जीवन में उसको पूरापाजाना असम्भव है। यह जीवन तोभावी जीवन के लिएतैयारहोने का समय है। मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है। शक्तियों की सार्थकता तभी है, जब उनकी पूरी अभिव्यक्ति हो। ऐसी शक्ति को मानना, जिसकी पूरी अभिव्यक्ति नहो सके, स्वविरोधी है।56 (स) मूल्यों के संरक्षण के लिए- हाफडिंग ने मूल्यों की नित्यता के सिद्धान्त को माना है और कहा है कि इस जीवन में हम जिन मूल्यों को उपलब्ध करते हैं, वेनैतिक-दुनिया में सुरक्षित रहते हैं। उनका नाश नहीं होता है और अपने अधिष्ठान के रूप में उन्हें आत्मा का सनातन अस्तित्व चाहिए। इस प्रकार, मूल्यों की नित्यता का सिद्धान्त आत्मा की अमरता सिद्ध करता है। (द) शुभाशुभके फल-भोग के लिए- कांटने आत्माकी अमरता के समर्थन में एक और नैतिक-दलील दी है। हमें इस बात का पक्का विश्वास होता है कि पुण्य करनेवाले को सुख मिलना चाहिए और पाप करने वाले को दुःख, लेकिन पुण्य करने वाले इस दुनिया में बहुत कम दुःखी होते हैं, इसलिए हम यह मान लेते हैं कि मरने के बाद एक दूसरा जीवन होगा, जिसमें पुण्य करनेवालों को उचित मात्रा में सुख और पाप करनेवालों को उचित मात्रा में दुःख मिलेगा। देखा जाता है कि यहाँ पापियों को भी पूरा दण्ड नहीं मिलता। शारीरिकयातना, कारावास इत्यादि से भी पापियों को उचित मात्रा में दुःख नहीं मिलता, इसलिए भविष्य के जीवन में उनको उचित मात्रा में दुःख मिलेगा, इसलिए इस जन्म के नैतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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