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________________ आत्मा की अमरता अस्तित्व था और इसलिए आगे भी रहेगा। शरीर के पैदा होने से पहले आत्मा थी, इसलिए शरीर का नाश होने के बाद भी रहेगी। शरीर के नाश होने से आत्मा नामक अभौतिक सत्ता के अस्तित्व पर कोई असर नहीं होता । (6) आत्मा में शरीर और उसके बन्धनों से मुक्त होने की अप्रतिहत इच्छा पाई जाती है। इससे यह सिद्ध होता है कि वह स्वरूपत: अमर है। अरस्तू भी यह मानता है कि आत्मा का ऐन्द्रिक - अंश मरणशील है, यहाँ तक कि उसकी निष्क्रिय बुद्धि भी, जो कि शरीर के ऊपर निर्भर है, मरणशील है, लेकिन उसकी सक्रिय बुद्धि अभौतिक है और इसलिए अमर है। बर्कले भी आत्मा की निरवयवता, अविभाज्यता और अभौतिकता से उसकी अमरता को सिद्ध करता है। लाइब्नीज़ भी आत्मा की अभौतिकता से उसकी अमरता सिद्ध करता है। वैज्ञानिक - युक्ति- मार्टिन्यू ने शक्ति- अक्षयता (ऊर्जा की नित्यता) की वैज्ञानिकधारणा के आधार पर आत्मा की अमरता को सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। उनका कहना है कि मृत्यु अपने भौतिक रूप में केवल शक्ति का परिवर्तन है । मृत्यु होने पर शरीर की शक्तियाँ विशृंखल हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप शरीर नष्ट हो जाता है, परन्तु शक्तिअक्षता के नियम के अनुसार ये शक्तियाँ पूर्णतः नष्ट नहीं हो सकतीं । या तो शक्तिअक्षयता नियम में मानसिक शक्ति सम्मिलित रहती है, अथवा नहीं रहती। यदि यह भौतिकशक्ति पर लागू होता है, तो मन पदार्थों से पृथक् अथवा स्वतन्त्र रहता है, अर्थात् मनुष्य की आत्मा मृत्यु के पश्चात् भी जीवित रह सकती है, परन्तु यदि यह नियम भौतिक और मानसिक-दोनों शक्तियों पर लागू होता है, तो ठीक जिस प्रकार भौतिक शक्ति पूर्णत: कभी भी समाप्त नहीं हो सकती, वरन् किसी न किसी रूप में बची ही रहती है, उसी प्रकार मानसिक-शक्ति भी मृत्यु के उपरान्त पूर्णतः समाप्त नहीं हो सकती, वरन् यह किसी न किसी रूप में मौजूद रहती है। इस प्रकार, मानवीय आत्मा की अमरता शक्ति - अक्षयता नियम के विरुद्ध नहीं है। 52 293 - Jain Education International नैतिक-युक्तियाँ- आधुनिक युग में आत्मा की अमरता को सिद्ध करने के लिए दार्शनिक- युक्तियों की अपेक्षा नैतिक-युक्तियों को अधिक पसन्द किया जाता है । मार्टिन्यू, कांट, जेम्स सेथ और हाफडिंग आदि ने निम्नलिखित नैतिक-युक्तियाँ दी हैं (अ) ज्ञान की पूर्णता के लिए- मार्टिन्यू आत्मा की अमरता को आवश्यक मानते हैं। उनका कहना है कि हमारी मनीषा दिक्-काल से मर्यादित होती है। मनीषा को विकास हेतु क्रमश: दिक्-काल की मर्यादाओं से ऊपर उठना होता है, परन्तु वर्त्तमान सीमित जीवन में मानस दिक्-काल को मर्यादाओं को पूर्णतः नहीं लाँघ सकता, अतः यह आशा करना तर्कसंगत होगा कि मृत्यु के पश्चात् एक भविष्य - जीवन होता है, जिसमें मनीषा अपनी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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