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________________ 292 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन अपने शुभाशुभकर्मों के आधार पर उच्चलोक (दैवीय-जीवन) मध्यलोक (मानवीय-जीवन) और अधोलोक (नारकीय एवं पशु-जीवन) की प्राप्ति होती है। __ उपनिषदों से भी इसका समर्थन होता है कि यदि प्राणी शुभाचरण करता है, तो वह शुभ योनियों में जन्म लेता है और अशुभ आचरण करता हैब तो निम्न योनियों में जन्म लेता है। कठोपनिषद् में कहा गया है कि अपने कर्म और ज्ञान के अनुसार कितने ही देहधारी तो शरीर धारण करने के लिए किसी योनि को प्राप्त होते हैं और कितने ही स्थावर-भाव वृक्षादि की जाति को प्राप्त हो जाते हैं। छान्दोग्योपनिषद् में भी कहा गया है कि जो अच्छा आचरण करेंगे, वे अगले जीवन में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि का अच्छा जीवन प्राप्त करेंगे, लेकिन जो दुराचारी होंगे, वे शूकर, कुत्ते और शूद्र आदि की निम्न योनियों में जन्म लेंगे।51 निष्कर्ष इस प्रकार, हम देखते हैं कि जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शन पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं। पुनर्जन्म के सिद्धान्त का महत्वपूर्ण लाभ यह है कि वह जहाँ एक ओर व्यक्ति में अवसर की अनेकता के आधार पर घोर निराशा केक्षण में भीआशावादिता का संचार करता है, वहाँ यह बताता है कि हम जब तक नैतिक-साध्य, निर्वाण की प्राप्ति नहीं कर लेते हैं, तब तक हमें प्रकृति की ओर से अवसर प्रदान किए जाते रहेंगे, ताकि हम अपने साध्य को प्राप्त कर सकें। दूसरी ओर, व्यक्ति के हृदय से मृत्यु के भय को समाप्त करता 14. पाश्चात्य-दर्शन में आत्मा की अमरता या मरणोत्तर जीवन पाश्चात्य दार्शनिक-क्षेत्र में भी इस प्रश्न पर गहराई से विचार किया गया है। प्लेटो से लेकर वर्तमान युग तक आत्मा की अमरता या मरणोत्तर जीवन की सिद्धि के लिए दार्शनिक, वैज्ञानिक तथा नैतिक-युक्तियाँ प्रस्तुत की गई हैं। कुछ प्रमुख विचारकों की युक्तियाँ निम्नानुसार हैं दार्शनिक-युक्तियाँ- प्लेटो ने आत्मा की अमरता के लिए निम्न दार्शनिकयुक्तियाँ दी हैं-(1) अवयवहीन होने से आत्मा की अमरता सिद्ध होती है।आत्मा निरावयव है, अविभाज्य है, इसलिए आत्मा अमर है। (2) स्रष्टा की अच्छाई से भी आत्मा की अमरता सिद्ध होती है। यदि ईश्वर इच्छा है, तो वह आत्मा को नष्ट नहीं होने देगा और उसके कर्मों के फल से वंचित नहीं करेगा। (3) आत्मा सत् है और सत् असत् नहीं हो सकता। (4) बुद्धि आत्मा का स्वरूप है। ऐन्द्रियता और इच्छा आत्मा के मरणशील अंश हैं, क्योंकि ये शरीर के ऊपर निर्भर हैं, लेकिन बुद्धि आत्मा का अमर अंश है। (5) आत्मा का पहले भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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