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आत्मा की अमरता
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कर्मों के फलयोग के लिए मरणोत्तर जीवन को स्वीकार करना होगा। एक व्यक्ति जीवन भर सत्कर्म करता है, लेकिन उसे बुरा फल मिलता है और दूसरा व्यक्ति जीवन भर असत्कर्म करता है, लेकिन उसे अच्छा फल मिलता है, तो हमारी यह मान्यता होती है कि इस जीवन के पूर्व जीवन में पहले व्यक्ति ने असत्कर्म किए होंगे और दूसरे ने सत्कर्म, जिनका प्रतिफल उन्हें इस जीवन में मिल रहा है। इस प्रकार, इस जीवन के पूर्व जीवन को स्वीकार करना होता है। इस प्रकार, वर्तमान जीवन के जन्म से पूर्व और वर्तमान जीवन की समाप्ति के पश्चात् भी आत्मा का अस्तित्वमानना हीआत्मा की अमरता की मान्यता है। बिनाआत्मा की अमरता को स्वीकार किए कर्मफलव्यतिक्रम की सम्यक् व्याख्या नहीं की जा सकती।
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सन्दर्भ ग्रंथ1. सूत्रकृतांग, 1/1/7-8.
उत्तराध्ययन, 14/18. दीघनिकाय, सामण्णफलसुत्त नीतिशास्त्र कासर्वेक्षण, पृ. 50-51. अन्ययोगव्यवच्छेदिका, 18. वीरागस्तोत्र, 8/2-3. उत्तराध्ययन, 14/19. भगवतीसूत्र, 9/6/3/87. वही, 7/2/273. भगवतीसूत्र, 9/6/387;1/4/42. संयुत्तनिकाय, 23/1/3-5. आगम युग काजैन-दर्शन, पृ. 47. संयुत्तनिकाय, 12/2/7. मज्झिमनिकाय, 1/3/2. वही, 1/1/2. दर्शन दिग्दर्शन, पृ. 514. गौतम दिबुद्ध, पृ. 39-40. गौतम बुद्ध, पृ. 32-33.
बौद्ध-दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन, पृ. 459. 20. समयसार, 390-402.
बौद्ध-दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन, पृ. 439-440.
बौद्ध-दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन, पृ. 459. 23. माध्यमिककारिका, 19/6, 18-10; तुलनीय-पद्मनन्दिपंचविंशतिका, 8/13. 24. गुण-पर्यायवद्रव्यम्।- तत्त्वार्थ सूत्र, 5/37.
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