SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा की अमरता 283 आत्मा (अत्ता) का अर्थ पिटक-साहित्य में जहाँ अनात्म (अनत्त) का प्रयोग हुआ है, वहीं उसमें आत्मा (अत्ता) शब्द का भी प्रयोग हुआ है। बुद्ध ने यह भी उपदेश दिया है कि आत्मा की शरण स्वीकार करो (अत्तसरण), आत्मा को ही अपना प्रकाश बनाओ (अत्तदीप); आत्मा की खोज करो (अत्तानं गवेसेय्याथ)। इसी आधार पर आनन्द के. कुमार स्वामी, कु. हार्नर और डॉ. राधाकृष्णन् ने बौद्ध-दर्शन में औपनिषदिक आत्मा को खोजने का प्रयास किया है, लेकिन यह प्रयत्न सम्यक् नहीं है। श्री उपाध्याय के शब्दों में यह अनधिकारपूर्ण प्रयत्न ही है। यहाँ बुद्ध किसी पारमार्थिक अविनाशी एवं अक्षय आत्मा की शरण ग्रहण करने या खोज करने की बात नहीं कहते हैं। सम्पूर्ण बुद्ध-वचनों के प्रकाश में यहाँ आत्मा शब्द का अर्थ स्वयं (Self) यापरिवर्तनशीलस्व है। जिस प्रकार अनात्म का अर्थ अपना नहीं है, उसी प्रकार आत्म का अर्थ अपना' या 'स्वयं' है।22 अनित्यका अर्थ ____ अनित्य का अर्थ विनाशशील माना जाता है, लेकिन यदि अनित्य का अर्थ विनाशी करेंगे, तो हम फिर उच्छेदवाद की ओर होंगे। वस्तुतः, अनित्य का अर्थ है- परिवर्तनशील। परिवर्तन और विनाशअलग-अलग हैं। विनाश में अभाव हो जाता है, परिवर्तन में वह पुनः एक नए रूप में उपस्थित हो जाता है, जैसे बीज पौधे के रूप में परिवर्तित हो जाता है, विनष्ट नहीं होता। बुद्ध सत्त्व की अनित्यता या क्षणिकता का उपदेश देते हैं, तो उनका आशय यह नहीं है कि वह विनष्ट हो जाने वाला है, वरन् यही है कि वह परिवर्तनशील है, वह एक क्षण भी बिना परिवर्तन के नहीं रहता। बौद्ध-दर्शन में अनित्य और क्षणिक का मतलब है-सतत परिवर्तनशील। जैन-दर्शन जिसे परिणामी कहता है, उसे ही बौद्ध-दर्शन में अनित्य या क्षणिक कहा जाता है। अव्याकृत का सम्यक् अर्थ बुद्ध ने जीव और शरीर की भिन्नता, तथागत की परिनिर्वाण के पश्चात् की स्थिति आदि प्रश्नों को अव्याकृत-कोटि में रखा है। बुद्ध का अव्याकृत कहने का आशय यही है कि अस्ति और नास्ति की कोटियों से सीमित व्यावहारिक-भाषा उसे बता पाने में असमर्थ है। हाँ और ना में इसका कोई उत्तर नहीं दिया जा सकता। जैन-दर्शन में जो अर्थ अवक्तव्य' का है, वही अर्थ बौद्ध-दर्शन में अव्याकृत' का है। बुद्ध मौन क्यों रहे? बुद्ध के मौन रहने का अर्थ यह है कि आत्मा-सम्बन्धी प्रश्नों का उत्तर हाँ और ना में नहीं दिया जा सकता, अत: जहाँ किसी एकान्तिक-मान्यता में जाने की सम्भावना हो, वहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy