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आत्मा का स्वरूप और नैतिकता
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वेदान्त ने आत्मा के तात्विक स्वरूप पर ही अपनी दृष्टि केन्द्रित की है। जैन-दर्शन दोनों ही पक्षों को स्वीकार कर उनके बीच समन्वय का कार्य करता है। नैतिक-साधना की दृष्टि से कह सकते हैं कि यह अनुभवाधारित या व्यावहारिक-आत्मा नैतिक-साधक है और अनुभवातीत शुद्धद्रव्यात्मा नैतिक-साध्य है। विवेक-क्षमताके आधार पर आत्मा के भेद
विवेक-क्षमता की दृष्टि से आत्माएँ दो प्रकार की मानी गई हैं- (1) समनस्क, (2) अमनस्क। समनस्क-आत्माएँ वे हैं, जिन्हें विवेक-क्षमतायुक्त मन उपलब्ध है और अमनस्क-आत्माएँ वे हैं, जिन्हें ऐसा विवेक-क्षमता से युक्त मन उपलब्ध नहीं है। जहाँ तक नैतिक-जीवन के क्षेत्र का प्रश्न है, समनस्क-आत्माएँ ही नैतिक-आचरण कर सकती हैं
और वे ही नैतिक-साध्य की उपलब्धि कर सकती हैं, क्योंकि विवेक-क्षमतासे युक्त मन की उपलब्धि होने पर ही आत्मा में शुभाशुभ का विवेक करने की क्षमता होती है, साथ ही इसी विवेकबुद्धि के आधार पर वे वासनाओं का संयमन भी कर सकती हैं। जिन आत्माओं में ऐसी विवेक-क्षमता का अभाव है, उनमें संयम की क्षमता का भी अभाव होता है, इसलिए वे नैतिक-प्रगति भी नहीं कर सकतीं। नैतिक-जीवन के लिए आत्मा में विवेक और संयमदोनों का होना आवश्यक है और वह केवल पंचेन्द्रिय जीवों में भी उन्हीं में सम्भव है, जो समनस्क हैं। यहाँ जैविक-आधार पर भी आत्मा के वर्गीकरण पर विचार अपेक्षित है, क्योंकि जैन-धर्म का अहिंसा-सिद्धान्त बहुत कुछ उसी पर निर्भर है। जैविक-आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण
जैन-दर्शन के अनुसार जैविक-आधार पर प्राणियों का वर्गीकरण निम्न तालिका से स्पष्ट हो सकता है
जीव
त्रस
स्थावर
पंचेन्द्रिय चतुरिन्द्रिय त्रीन्द्रिय द्वीन्द्रिय पृथ्वीकाय अपकाय तेजस्काय वायुकाय वनस्पतिकाय
जैविक-दृष्टि से जैन-परम्परा में दस प्राण-शक्तियाँ मानी गई हैं। स्थावर-एकेन्द्रिय जीवों में चारशक्तियाँ होती हैं- (1) स्पर्श-अनुभव-शक्ति, (2) शारीरिक-शक्ति, (3) जीवन (आयु)-शक्ति और (4) श्वसन-शक्ति। द्वीन्द्रिय जीवों में इन चार शक्तियों के अतिरिक्त स्वाद और वाणी की शक्ति भी होती है। त्रीन्द्रिय जीवों में इन छ: शक्तियों के साथ ही गन्धग्रहण की क्षमता भी होती है। चतुरिन्द्रिय जीवों में इन सात शक्तियों के
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