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आचारदर्शन का तात्त्विक आधार
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ही है। चतुर्थ आर्यसत्य में बौद्धदर्शन दुःख-निवृत्ति के उपाय के रूप में अपने साधना-मार्ग का निर्देश करता है। बौद्ध-दर्शन की यह मान्यता जैन-दर्शन के त्रिविध साधनापथ के समान ही है। बौद्ध-दर्शन में तीसरे आर्यसत्य के रूप में निर्वाण कीधारणा है, जो नैतिक-साध्य है। गीता की नैतिक-मान्यताएँ
___ गीता के आचारदर्शन में नैतिक-मान्यताओं के रूप में जीवात्मा, कर्मसिद्धान्त और ईश्वर के प्रत्यय स्वीकृत रहे हैं।
नैतिक-मान्यताएँ आचारदर्शन की मौलिक तात्त्विक-आधार हैं, वे आचारदर्शन की नींव के समान हैं। उनके अभाव में आचार के भव्य महल का निर्माण सम्भव नहीं है।
भारतीय-चिन्तन में आत्मा के अस्तित्व की अवधारणा, कर्मसिद्धान्त की अवधारणा और ईश्वर के अस्तित्व की अवधारणा के पीछे मूलरूप से नीतिशास्त्र को एक ठोस तात्विक-आधार प्रदान करने की दृष्टि रही है, इसलिए चाहे आत्मा के अस्तित्व को, या ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने का प्रयत्न हो, उसे नैतिक आधार पर ही पुष्ट करने का प्रयास हुआ है।
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सन्दर्भ ग्रंथ
नीतिप्रवेशिका, पृ. 28. 2. इण्डियन फिलासफी, भाग 2, पृ. 629. 3.
नीतिप्रवेशिका, पृ. 21. शङ्कराचार्य का आचारदर्शन, पृ. 84. भारतीय दर्शन, भाग 1, पृ. 286. भारतीय दर्शन की रूपरेखा, पृ. 174. आउटलाइन्स आफ जैनीज्म, पृ. 112.
सर्वदर्शनसंग्रह, पृ. 80. 9. रिलीजन इन दी मेकिंग, पृ. 39. 10. भारतीय दर्शन की रूपरेखा, पृ. 139.
मज्झिमनिकाय, चूल मालुंक्यपुत्तसुत्त, 63, पृ. 254-255. 12. वही, निवापसुत्त, 25, पृ. 101.
विशेष द्रष्टव्य-गीता, अध्याय,2,4,11,13,और 18. 14. नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण, पृ. 287. 15. वही, पृ. 293. _16. ऋग्वेद, 1/164/46.
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