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________________ आचारदर्शन का तात्त्विक आधार आगे बढ़ना होगा । नैतिक मान्यताओं पर निष्ठा रखना इसलिए भी आवश्यक है कि वे वैज्ञानिक-स्वयंसिद्धियों से भिन्न हैं । वैज्ञानिक-स्वयंसिद्धियों का बौद्धिक- प्रत्याख्यान सम्भव नहीं है, जबकि नैतिक-मान्यताओं का बौद्धिक- प्रत्याख्यान सम्भव है, क्योंकि उनकी सिद्धि तर्कशास्त्र के नियमों से नहीं होती। नैतिक मान्यताओं का आधार न तर्क है, न स्वयंसिद्धि, वरन् आस्था है । सूत्रकृतांग में सदाचार या नैतिक जीवन के लिए कुछ बातों आस्तिक्य-बुद्धि रखने का स्पष्ट निर्देश है और विस्तारपूर्वक यह बताया है कि कौन-सी मान्यताएँ सदाचारी - जीवन में बाधक हैं और कौन-सी मान्यताएँ सहायक हैं। 45 यदि नैतिक-मान्यताएँ मात्र पूर्वकल्पनाएँ या मनोकामना है और उनका बौद्धिकप्रत्याख्यान (तार्किक - निरसन) सम्भव है, तो फिर उनका क्या मूल्य होगा ? यदि हम उन्हें नैतिक-दृष्टि से तर्क के आधार पर सिद्ध करने का प्रयत्न भी करें, तो वह मात्र कामनाओं का औचित्यीकरण होगा। 241 पाश्चात्य - आचारदर्शन में कांट और अरबन ने इस प्रश्न की समीक्षा की है। कांट कहते हैं कि ये मान्यताएँ तर्कसिद्ध सिद्धान्त नहीं हैं, अपितु पूर्वकल्पनाएँ हैं, जो व्यवहारतः अनिवार्य हैं। यद्यपि ये हमारे बौद्धिक - ज्ञान का विस्तार नहीं करती हैं, तथापि व्यवहार के प्रसंग में बौद्धिक-प्रत्ययों को वस्तुनिष्ठ सत्यता (Objective Reality) प्रदान करती हैं । 46 श्री संगमलाल पाण्डे कहते हैं कि कांट ने नैतिक मान्यताओं के बौद्धिक- प्रत्याख्यान यह निष्कर्ष निकाला कि कोरा बौद्धिक- विवेचन निस्सार है और नैतिक व्यवहार उस वस्तु को सिद्ध कर देता है, जिसे कोरा बौद्धिक - विवेचन असिद्ध या संशयग्रस्त छोड़ देता है । " श्री अरबन लिखते हैं कि नैतिक मान्यताओं को कामना (मनोकल्पना) कहने से यह सिद्ध नहीं होता कि नैतिक मान्यताओं में कोई सत्यता नहीं है। इससे तो यही स्पष्ट होता है कि उस सत्य को पाने की बलवती कामना होने के कारण वह सत्य है और उसकी प्राप्ति भी सम्भव है । विज्ञान की मान्यता केवल उसके प्रतिपाद्य विषय की व्याख्या के लिए है। उसका जीवन और व्यवहार से कोई सम्बन्ध नहीं है, किन्तु नैतिक मान्यताएँ वास्तव में वे सत्य हैं, जिनसे मनुष्य जीते हैं । यदि वे भ्रम या असत्य हो जाएं, तो वस्तुत: हमारा जीना ही समाप्त हो जाए 148 पाश्चात्य - आचारदर्शन की नैतिक मान्यताएँ पाश्चात्य - आचारदर्शन में सर्वप्रथम कांट ने तीन नैतिक मान्यताओं की स्थापना की - (1) संकल्प की स्वतन्त्रता, (2) आत्मा की अमरता और (3) ईश्वर का अस्तित्व । केल्डरउड ने संकल्प की स्वतंत्रता एवं अमरता के अतिरिक्त व्यक्तित्व, बौद्धिकता (मनीषा) तथा शक्ति को भी नैतिक जीवन के लिए आवश्यक माना है। कांट नैतिक प्रगति की अनिवार्यता के आधार पर आत्मा की अमरता को सिद्ध करते हैं, जबकि अरबन ने उसे भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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