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________________ आचारदर्शन का तात्त्विक आधार ! मनुष्य कहे कि दुःख पराए का किया होता है, तो उच्छेदवाद हो जाता है। काश्यप ! बुद्ध इन को छोड़ सत्य को मध्यम प्रकार से बताते हैं ।' 7733 बुद्ध तो मध्यममार्ग के प्रतिपादक हैं, भला वे किसी भी एकान्तदृष्टि में कैसे पड़ते ? उन्होंने सत् के एकत्व और अनेकत्व, अस्तित्व (स्थायी) और अनस्तित्व के एकान्तिकमार्गों का परित्याग करके मध्यममार्ग का ही उपदेश दिया है। लोकायतिक ब्राह्मण से अपने संवाद में स्वयं उन्होंने इसे अधिक स्पष्ट कर दिया है । लोकायतिक ब्राह्मण भगवान् से बोला, “हे गौतम! क्या सभी कुछ है ? " "हे ब्राह्मण ! ऐसा कहना कि 'सभी कुछ है', पहली लौकिक- बात है । " " हे गौतम! क्या सभी कुछ नहीं है ?" 235 "हे ब्राह्मण ! ऐसा कहना कि 'सभी कुछ नहीं है', दूसरी लौकिक - बात है । " "हे गौतम! क्या सभी कुछ एकत्व (अद्वैत) है ?” "हे ब्राह्मण ! ऐसा कहना कि 'सभी कुछ एकत्व है', तीसरी लौकिक - बात है । " " हे गौतम! क्या सभी कुछ नाना है ? " “हे ब्राह्मण ! 'सभी कुछ नाना है', ऐसा कहना चौथी लौकिक-बात है । ब्राह्मण! इन अन्तों को छोड़ बुद्ध सत्य को मध्यम प्रकार से बताते हैं। 1734 इसी बात की पुष्टि कात्यायनगोत्रीय श्रमण के सम्मुख की गई सम्यग्दृष्टि की व्याख्या से भी होती है। आयुष्मान् कात्यायनगोत्र भगवान् से बोले, 'भन्ते ! जो लोग 'सम्यक् - दृष्टि' कहा करते हैं, वह 'सम्यक् दृष्टि' है क्या ?" " कात्यायन ! संसार के लोग दो अविद्याओं में पड़े हैं- (1) अस्तित्व की अविद्या में और (2) नास्तित्व की अविद्या में । कात्यायन ! 'सभी कुछ विद्यमान हैं', यह एक अन्त है, 'सभी कुछ शून्य है', यह दूसरा अन्त है । कात्यायन ! बुद्ध इन दो अन्तों को छोड़ सत्य को मध्यम प्रकार से बताते हैं । " 35 इस प्रकार, सत्-सम्बन्धी बौद्ध - दृष्टिकोण अनित्यतावादी होते हुए भी उच्छेदवाद नहीं है। आलोचकों ने उसे उच्छेदवाद समझकर जो आलोचनाएँ प्रस्तुत की हैं, वे चाहे उच्छेदवाद के सन्दर्भ में संगत हों, लेकिन बौद्ध दर्शन के सन्दर्भ में नितान्त असंगत हैं । बुद्ध सत् के परिवर्तनशील पक्ष पर जोर देते हैं, इतने मात्र से उसे उच्छेदवाद नहीं माना जा सकता। बुद्ध कि क्रिया है, कर्त्ता नहीं, यह अर्थ कदापि नहीं है कि बुद्ध कर्त्ता या क्रियाशील तत्त्व की सत्ता का निषेध करते हैं। उनके इस कथन का तात्पर्य इतना ही है कि क्रिया से भिन्न कर्ता नहीं है, परिवर्तन से भिन्न सत्ता नहीं है। सत्ता और परिवर्तन में पूर्ण तादात्म्य है, सत्ता से भिन्न परिवर्तन और परिवर्तन से भिन्न सत्ता की स्थिति नहीं है। परिवर्तन और परिवर्तनशील Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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