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________________ जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन (2) अकृतभोग, (3) भवभंग, (4) प्रमोक्षभंग और (5) स्मृतिभंग ।" इस प्रकार, एकान्तक्षणिकवाद भी नैतिकता की समीचीन व्याख्या करने से सफल नहीं होता। बुद्ध का अनित्यवाद उच्छेदवाद नहीं है अनित्यता और क्षणिकता बौद्ध दर्शन के प्रमुख प्रत्यय हैं । भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेशों में इन पर बहुत अधिक बल दिया है। यह भी सत्य है कि बुद्ध सत् को एक प्रक्रिया (Process) या प्रवाह के रूप में देखते हैं। उनकी दृष्टि में प्रक्रिया एवं परिवर्तनशीलता से भिन्न कोई सत्ता नहीं है । क्रिया है, लेकिन क्रिया से भिन्न कोई कर्त्ता नहीं है। बौद्ध दर्शन के इन मन्तव्यों को लेकर आलोचकों ने उसे जिस रूप में प्रस्तुत किया है, वह भगवान् बुद्ध के मूल आशय से बहुत दूर है। आलोचकों ने बुद्ध के क्षणिकवाद को उच्छेदवाद मान लिया और उसी आधार पर उस पर आक्षेप किए हैं, जो कि वस्तुतः उस पर लागू नहीं होते। बुद्ध का क्षणिकवाद उच्छेदवाद नहीं कहा जा सकता । भगवान् बुद्ध ने तो स्वयं उच्छेदवाद की आलोचना की है । बुद्ध का विरोध जितना शाश्वतवाद से है, उतना ही उच्छेदवाद से भी है। वे उच्छेदवाद और शाश्वतवाद में से किसी भी वाद में पड़ना नहीं चाहते थे, इसीलिए उन्होंने वत्सगोत्र परिव्राजक के प्रति मौन रखा। वत्सगोत्र परिव्राजक भगवान् से बोला, "हे गौतम! क्या 'अस्तिता' है ?" उसके यह पूछने पर भगवान् चुप रहे । "हे गौतम! क्या 'नास्तिता' है ?" 234 यह पूछने पर भी भगवान् चुप रहे। तब, वत्सगोत्र परिव्राजक आसन से उठकर चला गया । वत्सगोत्र परिव्राजक के चले जाने के बाद ही आयुष्मान् आनन्द भगवान् से बोले, भन्ते! वत्सगोत्र परिव्राजक से पूछे जाने पर भगवान् ने उत्तर क्यों नहीं दिया ? " आनन्द ! यदि मैं वत्सगोत्र परिव्राजक से 'अस्तिता है' कह देता, तो यह शाश्वतवाद सिद्धान्त हो जाता और यदि मैं वत्सगोत्र से 'नास्तिता है' कह देता, तो यह उच्छेदवाद का सिद्धान्त हो जाता । " 32 बुद्ध ने शाश्वतवाद और उच्छेदवाद के एकान्त-मार्ग से बचने के लिए सुख-दुःख को एकान्तरूप से आत्मकृत और परकृत मानने से इनकार किया, क्योंकि इनमें से किसी भी एक सिद्धान्त को स्वीकार करने पर उन्हें एकान्त या अतिवाद में जाने की सम्भावना प्रतीत हुई। अकाश्यप के प्रति वे कहते हैं, "काश्यप ! जो करता है, वही भोगता है, ख्याल कर, यदि कहा जाए कि दुःख अपना स्वयं किया होता है, तो शाश्वतवाद हो जाता है। काश्यप ! ' दूसरा करता है और दूसरा भोगता है', ख्याल कर, यदि संसार के फेर में पड़ा हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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