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________________ आचारदर्शन का तात्त्विक आधार 225 2. व्यक्तियों के दृष्टिकोणों, ज्ञानात्मक स्तरों तथा वैचारिक-परिवेशों की विभिन्नताएँ। 3. भाषा की अपूर्णता तथा तज्जनित अभिव्यक्ति सम्बन्धी कठिनाइयाँ 4. सत् एक पूर्णता है, ज्ञाता मनस् उसकाही एक अंश है, अंशअंशी को पूर्णरूपेण नहीं जान सकता। इस प्रकार, हमारे ज्ञान की आंशिकता भी सत् सम्बन्धी दृष्टिकोणों की विविधता का कारण है। भारतीय चिन्तन में सत्सम्बन्धी विभिन्न दृष्टिकोण दार्शनिक-जगत् में सत्-सम्बन्धी विभिन्न दृष्टिकोणों के मूल में प्रमुख रूप से तीन प्रश्न रहे हैं (अ) सत् के एकत्व और अनेकत्व का प्रश्न : इस सन्दर्भ में प्रमुख रूप से तीन सिद्धान्त सामने आए हैं- (1) एकत्ववाद (Monoism), (2) द्वितत्त्ववाद (Dualism), (3) बहुतत्त्ववाद (Pluralism)। (ब) सत् के परिवर्तनशील याअपरिवर्तनशील होने का प्रश्न : इस सम्बन्धमें प्रमुख रूपसे दो सिद्धान्तहैं- (1) सत् निर्विकार एवं अव्यय है (Being is Real) और (2) सत् का लक्षण परिवर्तशीलता है, या परिवर्तनही सत् है (Becoming is Real)। (स) सत् के भौतिक या आध्यात्मिक-स्वरूप का प्रश्न : इस सम्बन्ध में भी प्रमुख रूपसे दो दृष्टिकोण हैं- (1) भौतिकवाद (Materialism) और (2) अध्यात्मवाद (Idealism)। __दार्शनिक-जगत् के सभी तात्त्विक-सिद्धान्त उपर्युक्त दृष्टिकोणों के विभिन्न संयोगों का परिणाम हैं। संक्षेप में, प्रमुख भारतीय-दर्शनों के सत्-सम्बन्धी दृष्टिकोण निम्नानुसार हैं 1. चार्वाक्-दर्शन सत् को भौतिक, परिणामी एवं अनेक मानता है। 2. प्रारम्भिक बौद्ध-दर्शन के अनुसार सत् परिवर्तनशील (अनित्य), अनेक और भौतिक एवं आध्यात्मिक-दोनों प्रकार का है। 3. बौद्ध-दर्शन के विज्ञानवाद-सम्प्रदाय के अनुसार सत् आध्यात्मिक, अद्वय एवं परिवर्तनशील है। 4. बौद्ध-दर्शन के माध्यमिक (शून्यवाद) सम्प्रदाय के अनुसार परमार्थ न परिणामी है और न अपरिणामी। वह एक भी नहीं है और नाना भी नहीं है, उसे नि:स्वभाव कहा गया है। 5. जैन-दर्शन में सत् को पर्यायदृष्टि से परिवर्तनशील, द्रव्यदृष्टि से ध्रौव्य (अव्यय) लक्षणयुक्त, भौतिक एवं आध्यात्मिक-दोनों प्रकार का तथा अनेक माना गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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