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के आधार पर ही निर्मित होती हैं। व्यक्तियों के बौद्धिक-विकास, पर्यावरण और संस्कारों में भिन्नताएँ स्वाभाविक हैं, अत: उनकी मूल्य-दृष्टियाँ अलग-अलग होंगी और यदिमूल्यदृष्टियाँ भिन्न-भिन्न होंगी, तो नैतिक-प्रतिमान भी विविध होंगे। यह एक आनुभाविक-तथ्य है कि विविध दृष्टिकोणों के आधार पर एक ही घटना का नैतिक-मूल्यांकन अलग-अलग होता है। उदाहरण के रूप में, परिवार नियोजन की धारणा, जनसंख्या के बाहुल्य वाले देशों की दृष्टि से चाहे उचित हो, किन्तु अल्प जनसंख्या वाले देशों एवं जातियों की दृष्टि से अनुचित होगी। राष्ट्रवाद अपनी प्रजाति की अस्मिता की दृष्टि से चाहे अच्छा हो; किन्तु सम्पूर्ण मानवता की दृष्टि से अनुचित है। हम भारतीय ही एक ओर जातिवाद एवं सम्प्रदायवाद को कोसते हैं, तो दूसरी ओर भारतीयता के नाम पर अपने को गौरवान्वित अनुभव करते हैं। क्या हम यहाँ दोहरे मापदण्ड का उपयोग नहीं कर रहे हैं ? स्वतन्त्रता की बात को ही लें। क्या स्वतन्त्रता और सामाजिक-अनुशासन सहगामी होकर चल सकते हैं ? आपातकाल कोही लीजिए, वैयक्तिक स्वतन्त्रता के हनन की दृष्टि से, या नौकरशाही के हावी होने की दृष्टि से हम उसकी आलोचना कर सकते हैं, किन्तु अनुशासन बनाए रखने और अराजकता को समाप्त करने की दृष्टि से उसे उचित ठहराया जा सकता है। वस्तुतः, उचितता और अनुचितता का मूल्यांकन किसी एक दृष्टिकोण के आधार पर न होकर विविध दृष्टिकोणों के आधार पर होता है। जो एक दृष्टिकोण या अपेक्षा से नैतिक हो सकता है, वही दूसरे दृष्टिकोण या अपेक्षा से अनुचित हो सकता है; जो एक परिस्थिति के लिए उचित हो सकता है, वही दूसरी परिस्थिति में अनुचित हो सकता है। जो एक व्यक्ति के लिए उचित है, वही दूसरे के लिए अनुचित हो सकता है। एक स्थूल शरीर वाले व्यक्ति के लिए स्निग्ध पदार्थों का सेवन अनुचित है, किन्तु कृशकाय व्यक्ति के लिए उचित है; अत: हम कह सकते हैं कि नैतिकमूल्यांकन के विविध दृष्टिकोण हैं और इन विविध दृष्टिकोणों के आधार पर विविध नैतिकप्रतिमान बनते हैं, जो एक ही घटना का अलग-अलग नैतिक-मूल्यांकन करते हैं।
नैतिक-मूल्यांकन परिस्थिति-सापेक्ष एवं दृष्टि-सापेक्ष मूल्यांकन हैं; अत: उनकी सार्वभौम सत्यता का दावा करना भी व्यर्थ है। किसी दृष्टि-विशेष या अपेक्षा-विशेष के आधार पर ही वे सत्य होते हैं। संक्षेप में, सभी नैतिक-प्रतिमान मूल्य-दृष्टि-सापेक्ष हैं और मूल्य-दृष्टि स्वयं व्यक्तियों के बौद्धिक-विकास, संस्कार तथा सांस्कृतिक, सामाजिक एवं भौतिक-पर्यावरण पर निर्भर करती है और चूँकि व्यक्तियों के बौद्धिक-विकास, संस्कार तथा सांस्कृतिक, सामाजिक एवं भौतिक-पर्यावरण में विविधता और परिवर्तनशीलता है, अत: नैतिक-प्रतिमानों में विविधता या अनेकता स्वाभाविक ही है।
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