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________________ 208 जैन, बौद्ध और गीता के आधारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन सकता है। मनुष्य की जीवनदृष्टि या मूल्यदृष्टि का निर्माण भी स्वयं उसके संस्कारों एवं परिवेशजन्य तथ्यों से प्रभावित होता है; अत: मूल्यवादनैतिक-प्रतिमानकेसन्दर्भ में विविधता की धारणा को ही पुष्ट करता है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि नैतिक-प्रतिमान के प्रश्न पर न केवल विविधदृष्टिकोणों से विचार हुआ है, अपितु उसका प्रत्येक सिद्धान्त स्वयं भी इतने अन्तर्विरोधों से युक्त है कि वह एक सार्वभौम नैतिक-मापदण्ड होने का दावा करने में असमर्थ है।आजभी इस सम्बन्ध में किसी सर्वमान्य सिद्धान्त का अभाव है। वस्तुतः, नैतिक-मानदण्डों की यह विविधता स्वाभाविक ही है और जो लोग किसी एक सर्वमान्य नैतिक-प्रतिमान की बात करते हैं, वे कल्पनालोक में ही विचरण करते हैं। नैतिक-प्रतिमानों की इस विविधता के कई कारण हैं। सर्वप्रथम तो नैतिकता और अनैतिकता का यह प्रश्न उस मनुष्य के सन्दर्भ में है, जिसकी प्रकृति बहुआयामी (Multidimensional) और अन्तर्विरोधों से परिपूर्ण है। मनुष्य केवल चेतनसत्ता नहीं है, अपितु चेतनायुक्त शरीर है; वह केवल व्यक्ति नहीं है, अपितु समाज में जीने वाला व्यक्ति है। उसके अस्तित्व में वासना और विवेक तथा वैयक्तिकताऔर सामाजिकता के तत्त्व समाहित हैं। यहाँ हमें यह भी समझ लेना है कि वासना और विवेक में तथा व्यक्ति और समाज में स्वभावत: संगति (Harmony) नहीं है। वे स्वभावत: एक-दूसरे के विरोध में हैं। मनोवैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि 'इड' (वासना-तत्त्व) और 'सुपर ईगो' (आदर्श-तत्त्व) मानवीय-चेतना के समक्ष प्रतिपक्षी के रूप में ही उपस्थित होते हैं। उसमें समर्पण और शासन की दो विरोधी मूल प्रवृत्तियाँ एक साथ काम करती हैं। एक ओर, वह अपनी अस्मिता को बचाए रखना चाहता है, तो दूसरी ओर अपने व्यक्तित्व को व्यापक बनाना चाहता है, समाज के साथ जुड़ना चाहता है। ऐसी बहुआयामी एवं अन्तर्विरोधों से युक्त सत्ता के शुभ या हित एक नहीं, अनेक होंगे और जब मनुष्य के शुभ या हित (Good) ही विविध हैं, तो फिर नैतिक-प्रतिमान भी विविध ही होंगे। किसी परम शुभ (Ultimate reality) की कल्पना परम सत्ता (Ultimategood) के प्रसंग में चाहे सही भी हो; किन्तु मानवीय- अस्तित्व के प्रसंग में सही नहीं है। मनुष्य को मनुष्य मानकर चलना होगा- ईश्वर मानकर नहीं और एक मनुष्य के रूप में उसके हित या साध्य विविध ही होंगे। साथ ही, हितों या साध्यों की यह विविधता नैतिक-प्रतिमानों की अनेकता को ही सूचित करेगी। नैतिक-प्रतिमान का आधार व्यक्ति की जीवन-दृष्टि या मूल्य-दृष्टि होगी, किन्तु व्यक्ति की मूल्य-दृष्टि या जीवन-दृष्टि व्यक्तियों के बौद्धिक-विकास, संस्कार एवं पर्यावरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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