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भारतीय और पाश्चात्य नैतिक मानदण्ड के सिद्धान्त
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आर्थिक-मूल्यमाने हैं, उसी प्रकार भारतीय-दर्शन में भीअर्थपुरुषार्थ को तारतम्य की दृष्टि से सबसे नीचे माना है। जिस प्रकार अरबन के दर्शन में शारीरिक और मनोरंजन सम्बन्धी मूल्यों का स्थान आर्थिक-मूल्यों से ऊपर, लेकिन सामाजिक-मूल्यों से नीचे है, उसी प्रकार भारतीय-दर्शन में भी मोक्ष को सर्वोच्च पुरुषार्थ माना गया है। अरबन के दृष्टिकोण की भारतीय-चिन्तन से कितनी अधिक निकटता है, इसे निम्न तालिका से समझा जा सकता
पुरुषार्थ
काम
काम
पाश्चात्य-दृष्टिकोण भारतीय-दृष्टिकोण जैन-दृष्टिकोण मूल्य जैविक-मूल्य 1.आर्थिक-मूल्य
अर्थपुरुषार्थ
अर्थ 2. शारीरिक-मूल्य
कामपुरुषार्थ 3. मनोरंजनात्मक-मूल्य
कामपुरुषार्थ सामाजिक-मूल्य 4. संगठनात्मक-मूल्य धर्मपुरुषार्थ व्यवहारधर्म 5. चारित्रिक-मूल्य
धर्मपुरुषार्थ निश्चयधर्म आध्यात्मिक-मूल्य
मोक्षपुरुषार्थ 6. कलात्मक
आनन्द (संकल्प) अनन्तसुख एवंशक्ति 7. बौद्धिक
चित् (ज्ञान)
अनन्तज्ञान 8. धार्मिक
सत् (भाव)
अनन्त दर्शन ___इस प्रकार, अपनी मूल्य-विवेचना में प्राच्य और पाश्चात्य-विचारक अन्त में एक ही निष्कर्ष पर आ जाते हैं और वह निष्कर्ष यह है कि आध्यात्मिक-मूल्य याआत्मपूर्णताही सर्वोच्च मूल्य है एवं वही नैतिक-जीवन का साध्य है। यद्यपि भारतीय-दर्शन में स्वीकत सभी जीवन-मूल्य और पाश्चात्य-आचारदर्शन में स्वीकृत विभिन्न नैतिक-प्रतिमान जैनआचारदर्शन में स्वीकृत रहे हैं, तथापि इसका यह अर्थ नहीं है कि जैन-दर्शन के पास नैतिक-प्रतिमान के किसी निश्चित सिद्धान्त का अभाव है। वस्तुत:, जैन-दर्शन की अनेकान्तवादी-दृष्टि ही इसके मूल में है। जिस प्रकार जैन-दर्शन तत्त्वमीमांसा और ज्ञानमीमांसा के क्षेत्र में विभिन्न परस्पर विरोधी दार्शनिक-विचारों को सापेक्ष रूप से स्वीकार करके उनमें पम्पन्तय करता है, उसी प्रकार जैन-आचारदर्शन भी विभिन्न नैतिक-प्रतिमानों को सापेक्षिक रूप से स्वीकार करके उनमें समन्वय स्थापित करने का प्रयत्न करता है।
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