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भारतीय और पाश्चात्य नैतिक मानदण्ड के सिद्धान्त
1. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से जीवमात्र की प्रवृत्ति दुःख - निवृत्ति की ओर है, क्योंकि मोक्ष दुःख की आत्यन्तिक- निवृत्ति है; अतः वह सर्वोच्च मूल्य है। इसी प्रकार, आनन्द की उपलब्धि भी प्राणीमात्र का लक्ष्य है, चूँकि मोक्ष परम आनन्द की अवस्था है, अत: वह सर्वोच्च मूल्य है।
2. मूल्यों की व्यवस्था में साध्य-साधक की दृष्टि से एक क्रम होना चाहिए और उस क्रम में कोई सर्वोच्च एवं निरपेक्ष मूल्य होना चाहिए। मोक्ष पूर्ण एवं निरपेक्ष- स्थिति है, अतः वह सर्वोच्च मूल्य है। मूल्य वह है, जो किसी इच्छा की पूर्ति करे, अतः जिसके प्राप्त हो जाने पर कोई इच्छा ही नहीं रहती है, वही परम मूल्य है। मोक्ष में कोई अपूर्ण इच्छा नहीं रहती है, अत: वह परम मूल्य है ।
3. सभी साधन किसी साध्य के लिए होते हैं और साध्य की उपस्थिति अपूर्णता की सूचक है। मोक्ष की प्राप्ति के पश्चात् कोई साध्य नहीं रहता, इसलिए वह परम मूल्य है। यदि हम किसी अन्य मूल्य को स्वीकार करेंगे, तो वह साधन-मूल्य ही होगा और साधन - मूल्य को परम मूल्य मानने पर नैतिकता में सर्वालौकिकता एवं वस्तुनिष्ठता समाप्त हो जाएगी । 4. मोक्ष अक्षर एवं अमृतपद है, अतः स्थायी मूल्यों में वह सर्वोच्च मूल्य है।
5. मोक्ष आन्तरिक - प्रकृति या स्वस्वभाव है। वही एकमात्र परम मूल्य हो सकता है, क्योंकि उसमें हमारी प्रकृति के सभी पक्ष अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति एवं पूर्ण समन्वय की अवस्था में होते हैं।
15. भारतीय और पाश्चात्य मूल्य-सिद्धान्तों की तुलना
अरबन और एबरेट ने जीवन के विभिन्न मूल्यों की उच्चता एवं निम्नता का जो क्रम निर्धारित किया है, वह भी भारतीय चिन्तन से काफी साम्य रखता है। अरबन ने मूल्यों का वर्गीकरण इस प्रकार किया है
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