SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय और पाश्चात्य नैतिक मानदण्ड के सिद्धान्त सामान्य तत्त्व के आधार पर ही एक-दूसरे के निकट लाया जा सकता है। सहानुभूति के विस्तार का नैतिक-दर्शन केवल भावनात्मक मानवतावाद की स्थापना करता है, जबकि आवश्यकता ऐसे ठोस मानवतावाद की है, जो अनुशासन पर बनता है । तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि भारतीय - आचारदर्शन आत्मसंयम के प्रत्यय को स्वीकार करते हैं। जैन दर्शन नैतिक- पूर्णता के लिए संयम को आवश्यक मानता है । उसके त्रिविधि साधनापथ में सम्यक् आचरण का भी वही मूल्य है, विवेक और भावना का है। दशवैकालिकसूत्र में धर्म को अहिंसा, संयम और तपमय बताया है। 101 अहिंसा और तप भी संयम के ही पोषक हैं और इस अर्थ में संयम एक महत्वपूर्ण अंग है । भिक्षु-जीवन और गृहस्थ जीवन के आचरण में संयम या अनुशासन सर्वत्र महत्व दिया गया है। महावीर के सम्पूर्ण उपदेश का सार असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति है । 102 इस प्रकार, बबिट का यह दृष्टिकोण जैन-दर्शन के अति निकट है। बबिट का यह कहना भी कि वर्तमान युग के संकट का कारण संयमात्मक मूल्यों का हास है, जैन-दर्शन को स्वीकार है। वस्तुतः, आत्मसंयम और अनुशासन आज के युग की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। न केवल जैन- दर्शन में, वरन् बौद्ध और वैदिक-दर्शनों में भी संयम और अनुशासन आवश्यक माना गया है। भारतीय नैतिक-चिन्तन में संयम का प्रत्यय सभी आचारदर्शनों में और सभी कालों में बराबर स्वीकृत रहा है । संयममय जीवन भारतीय संस्कृति की विशेषता रहा है, इसलिए बबिट का यह विचार भारतीय चिन्तन के लिए कोई नई बात नहीं है। 183 - समकालीन मानवतावादी विचारकों के उपर्युक्त तीनों सिद्धान्त यद्यपि भारतीय चिन्तन में स्वीकृत हैं, तथापि भारतीय- विचारकों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने इन तीनों को समवेत रूप से स्वीकार किया है। जैन दर्शन में सम्यक् ज्ञान, दर्शन और चारित्र के रूप में; बौद्ध दर्शन में शील, समाधि और प्रज्ञा के रूप में तथा गीता में श्रद्धा, ज्ञान और कर्म के रूप में प्रकारान्तर से इन्हें स्वीकार किया गया है। यद्यपि गीता की श्रद्धा को आत्मचेतनता नहीं कहा जा सकता, तथापि गीता में अप्रमाद के रूप में आत्मचेतनता स्वीकृत है। बौद्धदर्शन के इस त्रिविध साधनापथ में समाधि आत्मचेतनता का, प्रज्ञा विवेक का और शील संयम का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी प्रकार, जैन-दर्शन में सम्यक्दर्शन आत्मचेतनता का, सम्यक ज्ञान विवेक का और सम्यक्चारित्र संयम का प्रतिनिधित्व करते हैं। 9. सत्तावादी नीतिशास्त्र और जैन- दर्शन 'सत्तावाद' समकालीन दार्शनिक चिन्तन का एक प्रमुख दार्शनिक-सम्प्रदाय है। किर्केगार्ड, हेडेगर, सार्त्र और जेस्पर्स इस वाद के प्रमुख विचारक हैं। यद्यपि सत्तावादी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy