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________________ 172 भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन 4. स्वतन्त्रता- ऐसा करो कि तुम्हारी इच्छा उसी समय अपने नियम के माध्यम से अपने को सार्वभौम विधान बनाने वाली समझ सके। 5. साध्यों का राज्य- ऐसा करो, मानो तुम सदा अपने नियम के माध्यम से साध्यों के एक सार्वभौम साध्य के विधायक सदस्य हो।83 जैन-दर्शन में कांट के सिद्धान्तों के कुछ सूत्र अवश्य मिल जाते हैं, जिनके आधार पर दोनों की निकटता को परखा जा सकता है। कांट और जैन-दर्शन, दोनों नैतिक-साध्य के रूप में ज्ञान को स्वीकार करते हैं। जैन-दर्शन के अनुसार निष्पक्ष एवं निरपेक्ष पूर्णज्ञान (केवलज्ञान) नैतिक-जीवन का साध्य है, यद्यपि इस सन्दर्भ में जैन-दर्शन और कांट में थोड़ा विचार-भेद भी है। कांट के अनुसार निरपेक्ष ज्ञानमय जीवन ही नैतिक-साध्य है, जबकि जैन-दर्शन के अनुसार ज्ञान के साथसाथ भाव भी नैतिक-साध्य है। जैन-दर्शन मोक्ष-दशा में अनन्तज्ञान के साथ-साथ अनन्तसुख की उपस्थिति भी मानता है। कांट के अनुसार ज्ञान ही साध्य है, जबकि जैनदर्शन के अनुसार ज्ञान भी साध्य है। ____ जहाँ तक परमशुभ की निरपेक्षता का प्रश्न है, जैन-दर्शन नैतिकता के आन्तरिक पक्ष या आचारलक्षी-निश्चयनय को अवश्य ही निरपेक्ष मानता है; लेकिन साथ ही वह व्यावहारिक नैतिकता की सापेक्षता भी स्वीकार करता है। जैन-दर्शन के अनुसार आन्तरिक नैतिकता अवश्य निरपेक्ष और निरपवाद है; लेकिन बाह्य नैतिक-नियम तो सापेक्ष और सापवादही हैं। जैन-दर्शन में अपवादमार्ग या आपदधर्म का विधान है, यद्यपि उसके लिए प्रायश्चित्त का विधान भी है। सामान्य स्थिति में निरपेक्षरूप से ही नैतिक नियमों के पालन पर जोर दिया गया है। इस प्रकार, जहाँ जैन-दर्शन निरपेक्ष और सापेक्ष-दोनों ही प्रकार की नैतिक-विधियों को स्वीकार करता है, वहाँ कांट केवल निरपेक्ष-नैतिकता पर ही बल देते हैं। कांट अपवादमार्ग और आपद्धर्म को स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार, जो शुभ है, वह सदैव ही शुभ है और जो अशुभ है, वह सदैव ही अशुभ है। जहाँ तक वासनाओं के बुद्धि से नियन्त्रित होने का प्रश्न है, जैन-दर्शन और कांट-दोनों के दृष्टिकोण समान हैं। जैन-दर्शन भी वासनाओं पर बुद्धि का शासन आवश्यक मानता है। आचारमार्ग की कठोरता की दृष्टि से कांट और जैन-दर्शन एकदूसरे के निकट हैं। कांट के आचारदर्शन को अपवादमार्ग एवं भावना के अभाव के कारण कठोरतावाद कहा जाता है, जबकि जैन-आचारदर्शन को तपप्रधान होने के कारण कठोर कहा जाता है, यद्यपि जैनदर्शन अपवादमार्ग और भावना को स्वीकार करता है। कांट के सार्वभौम विधान के सूत्र के अनुसार कोई भी कर्म तभी नैतिक हो सकता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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