________________
162
... भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन
आधार पर खड़ा करने का मिल का यह प्रयास तार्किक-दृष्टि से दूषित ही है। यदि सभी मनुष्य स्वभावत: सुख की कामना करते हैं, तो फिर 'सुख की कामना करनी चाहिए'-इस कथन का कोई अर्थ नहीं रह जाता, जबकि नैतिक आदेश के लिए चाहिए'-आवश्यक है, लेकिन मनोवैज्ञानिक-सुखवाद इस 'चाहिए' के लिए कोई अवकाश नहीं छोड़ता। इसी कारण, सिजविक तथा समकालीन विचारकों में ड्यरेंट ड्रेक आदि ने सुखवाद को विशुद्ध नैतिक-आधार पर खड़ा किया है। फिर भी, उपर्युक्त सभी विचारकों के लिए सुख काम्य है और उनकी दृष्टि में नैतिक-आदेश है-सुख के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
नैतिक सुखवादी-विचारधारा की दूसरी मान्यता यह थी कि वस्तुत: जो सुख काम्य है, वह वैयक्तिक नहीं, वरन् सामान्य सुख है। यह धारणा उपयोगितावाद के नाम से भी जानी जाती है। उपयोगितावाद की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. अधिक से अधिक सुख 2. उच्चतमसुख (ऐन्द्रिक-सुखोंकी अपेक्षामानसिक-सुख उच्चकोटिकामानागयाहै) 3. अधिक से अधिक संख्या का अधिक से अधिक सुख 4. बहुसंख्यकों का सुख 5. सार्वभौम एवं सामान्य सुख 6. सामाजिक-सुख इन आधारों पर उपयोगितावाद के मुख्य सिद्धान्त इस प्रकार हैं
1. सुख-प्राप्ति और दुःख-मुक्ति, केवल यह दो ही स्वतःसाध्य के रूप में काम्य हैं। अन्य सभी वस्तुएँ केवल इसीलिए काम्य हैं कि वे या तो सुखपूर्ण हैं या सुखवर्द्धक हैं, अथवा दुःखों का नाश करने वाली हैं।
2. जिस अनुपात में कोई कर्म सुख या दुःख देता है, उसी अनुपात में वह शुभ या अशुभ होता है।
3. प्रत्येक व्यक्ति का सुख समान है। किसी एक व्यक्ति का सुख जितना काम्य है, उतना ही दूसरे व्यक्ति का, अत: सुख की मात्राको बढ़ाने की चेष्टा करनी चाहिए, चाहे वह किसी का भी सुख हो।
4. सर्वाधिक सुख का अर्थ है-सुख की मात्रा में अधिक से अधिक संभाव्य वृद्धि। इसका अर्थ यह भी है कि सुख और दुःख को मापा जा सकता है।
5. परोपकारी होने का अर्थ है-सामाजिक-सुख या लोकोपयोगिता में वृद्धि करना। इसी प्रकार, स्वार्थी होने का मतलब है-सामाजिक-सुख में कमी करना।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि नैतिक-सुखवाद की धारणा सुख को काम्य मानते हुए भी लोकहित या लोकमंगल को स्थान देती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org