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भारतीय और पाश्चात्य नैतिक मानदण्ड के सिद्धान्त
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मानना पड़ेगा, जो कि हास्यास्पद होगा। अत:, यह दृष्टिकोण समुचित ही है कि राग-द्वेष से रहित साक्षी स्वरूप अन्तरात्मा को ही नैतिकता का प्रतिमान स्वीकार किया जाए। पाश्चात्य-परम्परा के अन्तरात्मक विधानवादी-विचारकों ने इस सम्बन्ध में गहराई से विचार नहीं किया और फलस्वरूप उनकी आलोचना की गई। भारतीय-विचारक इस सम्बन्ध में सजग रहे हैं। उनके अनुसार, आत्मा का राग-द्वेष से रहित जो शुद्ध स्वरूप है, वही नैतिकता का प्रतिमान हो सकता है और यदि इस रूप में हम अन्तरात्मा को नैतिकता का प्रतिमान स्वीकार करेंगे, तो उसका ईश्वरीय-विधानवाद और आत्मपूर्णतावाद से भी कोई विरोध नहीं रहेगा। ___नैतिक-प्रतिमानको आन्तरिक-विधान के रूप में मानने वाले विचारकों में अन्तरात्मा या अन्तर्दृष्टि (Intuition) के स्वरूप के विषय में अलग-अलग दृष्टिकोण हैं और उनके अलग-अलग सम्प्रदाय भी हैं। प्रमुख रूपसे उनसम्प्रदायों को निम्न वर्गों में रखा जासकता है- (अ) बुद्धिवादया तार्किकसहज ज्ञानवाद, (आ) रसेन्द्रियवाद या नैतिक-इन्द्रियवाद, (इ) सहानुभूतिवाद, (इ) नैतिक-अन्तरात्मवाद, (उ) मनोवैज्ञानिक-अन्तरात्मवाद।
(अ) बुद्धिवाद और जैनदर्शन- कैम्ब्रिज प्लेटोवादियों ने, जिनमें बेंजामिन विचकोट, राल्फ कडवर्थ,हेनरी मोर, रिचर्ड कम्बरलेन, सैमुअल क्लार्क और विलियम वुलेस्टन प्रमुख हैं, अन्तरात्मा को बौद्धिक या तार्किक माना है। उनकी दृष्टि में अन्तर्दृष्टि (प्रज्ञा) तर्कमय है। राल्फ कडवर्थ के अनुसार सद्गुण और अवगुण के अपने-अपने स्वरूप हैं। वे वस्तुमूलक एवं वस्तुतन्त्र हैं, न कि आत्मतन्त्र । वह उन्हें ज्ञानाकार प्रत्ययस्वरूप मानता है। उसके अनुसार हम शुभ और अशुभ का ज्ञान ठीक वैसे ही प्राप्त कर सकते हैं, जैस तर्कशास्त्र के प्रत्ययों का ज्ञान। वे इन्द्रियगम्य नहीं, वरन् बद्धिगम्य हैं। जैन-परम्परा राल्फ कडवर्थ के विचारों से इस अर्थ में सहमत है कि शुभ और अशुभ अथवा पुण्य या पाप का वस्तुनिष्ठ अस्तित्व है। वह कडवर्थ के साथ इस अर्थ में भी सहमत है कि प्रज्ञा या बुद्धि के द्वारा हम उन्हें जान सकते हैं । यद्यपि जैन-दर्शन के अनुसार इसका ज्ञान अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष के द्वारा भी होता है। सैमुअल क्लार्क नैतिक-नियमों को गणित के नियमों के समान प्रातिभ एवं प्रामाणिक मानता है। उसके अनुसार, वे वस्तुओं के स्वभाव में निहित हैं, अथवा वे वस्तुओं के गुणों और पारस्परिक-सम्बन्धों में विद्यमान हैं। उनको हम अपनी बुद्धि से पहचानते हैं। यह हो सकता है कि सभी लोग उनका पालन न करें, फिर भी वे उन्हें बुद्धि के द्वारा जानते अवश्य हैं। सैमुअल क्लार्क के इस विचार की जैन-दर्शन से तुलना करने पर ज्ञात होता है कि जैन-दार्शनिकों के अनुसार भी धर्म वस्तु के स्वभाव में निहित है। वस्तु का स्वभाव ही धर्म है" और बुद्धि अथवा आन्तरिकप्रत्यक्ष के द्वारा उस स्वभाव को जाना जा सकता है। सैमुअल क्लार्क ने सदाचार के
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