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________________ भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन है। 31 जैन दर्शन में राग-द्वेष को कर्म का अभिप्रेरक माना गया है। अपेक्षाभेद से क्रोध, मान, माया और लोभ - इन चार कषायों को भी अभिप्रेरक कहा गया है। " वास्तव में, इन मूल में आसक्ति, तृष्णा या राग ही है और भारतीय आचारदर्शनों के अनुसार यही नैतिक-निर्णय के प्रमुख तत्त्व हैं। गीता के अनुसार 'आसक्ति', बौद्ध दर्शन के अनुसार 'तृष्णा' और जैन-दर्शन के अनुसार 'राग' ही एक ऐसा तत्त्व है, जिसके आधार पर शुभ और अशुभ का निर्णय किया जा सकता है। 134 9. संकल्प और जैन- दृष्टि जैन- विचारणा में परिणाम और इच्छा में कोई अन्तर स्थापित किया हो, ऐसा हमारी जानकारी में नहीं है; बल्कि आचार्य कुन्दकुन्द ने तो समयसार में उन्हें पर्याय ही मान लिया है, लेकिन उन्होंने नियमसार में बन्धनकारी और अबन्धनकारी-कर्म के सम्बन्ध में विचार करते हुए परिणाम और ईहा के आधार पर अलग-अलग विचार किया है। इससे यह फलित हो सकता है कि आचार्य की दृष्टि में परिणाम और ईहा में कुछ अन्तर अवश्य ही रहा | 'हा' शब्द का अर्थ इच्छा होता है और जैन- विचारकों की दृष्टि में यह इच्छा भी नैतिक निर्णय का महत्वपूर्ण विषय है। नियमसार से स्पष्ट है कि इच्छापूर्वक किया वचन आदि कर्म ही बन्धन का कारण है, लेकिन इच्छारहित किया हुआ वचन आदि कर्मबन्धन का कारण नहीं है। 33 जेम्स सैथ कहते हैं कि 'संकल्प का कार्य सृष्टि करना नहीं, वरन् निर्देशन और नियन्त्रण करना है । ' 34 इस प्रकार, हम देखते हैं कि पाश्चात्य विचारणा का संकल्प जैन और बौद्ध-विचारणा के दृष्टि (दर्शन) शब्द के निकट आ जाता है, क्योंकि जैन एवं बौद्धविचारणाओं में दृष्टि ही चरित्र का नियामक एवं निर्देशक तत्त्व है। जैन तथा बौद्ध-विचारणाओं दृष्टि को उतना ही महत्व प्राप्त है, जितना कांट की विचारणा में संकल्प को। कांट के संकल्प के समान दृष्टि भी शुभाशुभता का अन्तिम मापक है। इतना ही नहीं, दोनों ही अपनेआप में आकारिक हैं। मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि अपने आप में अन्तर्वस्तु नहीं, वरन् वे आकार हैं, जिनके आधार पर अन्तर्वस्तु का मूल्य बनता है। जिस प्रकार कांट के नीतिशास्त्र में संकल्प नैतिकता का केन्द्रीय तत्त्व है, उसी प्रकार जैन और बौद्ध - विचारणा में सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि नैतिकता का केन्द्रीय तत्त्व है। - 10. चारित्र और नैतिक निर्णय जैन- विचारणा मैकेंजी के साथ सहमत होकर यह भी मानती है कि व्यक्ति का चारित्र भी नैतिक निर्णय का विषय है। मान लीजिए, किसी व्यक्ति के पास एक भरी हुई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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