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नैतिक-निर्णय का स्वरूप एवं विषय
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उनकी एक श्रृंखला खड़ी कर दी। जैन-दर्शन ने जब आस्रव के कारणों पर विचार किया, तो न केवल मिथ्यात्व या कषाय में से किसी एक पर बल दिया, अपितु मिथ्यात्व, कषाय, अविरति, प्रमाद और योग के पंचक को स्वीकार किया। यह सम्भव है कि किसी दृष्टिविशेष से किसी समय किसी एक पक्ष को प्रमुखता दी हो, लेकिन दूसरे तथ्यों को झुठलाया नहीं गया हो।
___पाश्चात्य-विचारणा में नैतिक-निर्णय के विषय के प्रश्न को लेकर जो चार दृष्टिकोण हैं, वे जैन-विचारणा में किस रूप में पाए जाते हैं और वह उनमें कैसे समन्वय करती है, इसका संक्षिप्त विवेचन भी यहाँ अपेक्षित है। 7. अभिप्राय और जैन-दृष्टि
जैन-विचारणा में अध्यवसाय' और 'परिणाम'दो विशेष प्रचलित शब्द हैं, जो नैतिक-निर्णय के विषय माने जाते हैं। नियमसार में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सामान्य प्राणियों की वचनादि क्रियाएँ परिणामपूर्वक (सप्रयोजन) होती हैं, इसलिए बन्धन का कारण होती हैं, जबकि केवलज्ञानी की वचनादि क्रियाएँ परिणाम (प्रयोजन) पूर्वक नहीं होती, अत: वे बन्धन का कारण नहीं होती हैं।" जैन-विचारणा में परिणाम शब्द जिस विशेष अर्थ में प्रयुक्त होता है, वैसा प्रयोग सामान्यतया अन्यत्र नहीं देखा जाता। परिणाम शब्द का अर्थ मात्र कार्य का फल नहीं, वरन् कार्य की मानसिक-संचेतना है। सरल शब्दों में, परिणाम का तात्पर्य है- कार्य का कर्ता द्वारा वांछित फल। इस प्रकार, ‘परिणाम' शब्द मिल के अभिप्राय या प्रयोजन का ही पर्यायवाची है।28
मिल की गलती यह नहीं थी कि उसने प्रयोजन को नैतिक-निर्णय का विषय माना, उसकी वास्तविक गलती यह थी कि उसने प्रयोजन' और 'प्रेरक' के मध्य एक खाईखोदना चाहा, लेकिन प्रयोजनों के निश्चय में प्रेरक का महत्वपूर्ण भाग होता है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। मिल प्रयोजन को प्रेरक से अलग कर अपने सिद्धान्त में एकांगिताला देता है, लेकिन जैन-विचारकों ने परिणाम को अध्यवसाय का समानार्थक मानकर उसे अर्थविस्तार दिया है, इससे वे अपने को एकांगिता के दोष से बचा पाए। 8. अभिप्रेरक और जैन-दृष्टि
भारतीय चिन्तन में अभिप्रेरक केवल सुख-दुःख का निष्क्रिय भाव नहीं, वरन् राग और द्वेष का सक्रिय तत्त्व है, जो अपने विभिन्न रूपों में नैतिक-निर्णय का महत्वपूर्ण विषय है। गीता में रजोगुणजनित लोभ, काम और क्रोध को अभिप्रेरक के रूप में स्वीकार किया गया है। बौद्ध-दर्शन में कर्मों की उत्पत्ति के तीन हेतु (अभिप्रेरक) माने गए हैं (1) लोभ, (2) द्वेष और (3) मोह। छन्द (इच्छा) को भी अभिप्रेरक के रूप में स्वीकार किया गया
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