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सम्यक्त्व
"सम्यक्त्व
आत्मोत्कर्ष के शिखर की प्रथम सीढ़ी है, अध्यात्म वर्णमाला का
प्रथम अक्षर है
आत्म दर्शन की
प्रथम कक्षा है
सम्यक् समझ ही है, सम्यक्त्व
जहाँ आग्रह - दुराग्रह से परे केवल सत्य का ग्रहण होता है सुषुप्त जीवन में
जब सम्यक्त्व की
वीणा बजती है
तो मिथ्यात्व की नींद टूटती है विवेक का सूरज उदित होता है
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सम्यक्त्व साधक जीवन की नींव है
जिस पर
साधना का महल
खड़ा होता है
सम्यक्त्व अन्तर्दृष्टि है जिसमें
कर्त्तव्य का बोध होता है
उसमें कर्तृत्त्व भाव भी
विलीन हो जाता है केवल साक्षीभाव रह जाता है
अनुभूति एवं दर्शन / 7
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