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आगमों के स्वरूप का निर्धारण और उनका पुस्तक रूप में लेखन पाठ भेद हुआ कहीं पर अर्थ भेद नहीं
हुआ दृष्टिवाद का उच्छेद ग्यारह अंग बारह उपांग चार मूल, छ: छेद दस प्रकर्णिक दो चूलिका यह है पैतालीस परम आगमों का निधान ज्योतिर्मय श्रुत साधन का विधान वीर की उस चिन्तन धारा के ये चिन्मय कण आज भी हैं सुरभित और पावन जैसे नवनीत
अगम आगम को सुगम बनाने सुन्दर व्याख्या ग्रन्थ लिखे प्रज्ञाशील उन ज्ञानियों ने नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका में स्याद्वादमयी वाणी में नय निक्षेप और श्रुत व्यवहार से अनुपम निरूपण है किया मोक्ष मार्ग का
अनुभूति एवं दर्शन / 40
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