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आगम
अगम आगम के उज्ज्वल प्रकाश से
वस्तु स्वरूप के दर्शन होते हैं जग को चमकाने वाले रवि शशि भी मिटा नहीं सके जो अज्ञानांधकार उसे मिटाता है।
महावीर का यह ज्ञान
उत्पाद - व्यय और ध्रौव्य मात्र तीन पदों से
गणधरों ने किया द्वादशांगी का सृजन स्वामी सुधर्मा से प्रवाहित हुई निर्मल ज्ञान धारा चौदपूर्व और बार अंगों का ज्ञान जिसे अपनी प्रखर प्रज्ञा में पांच - श्रुतकेवलियों ने समेटा फिर हुए दशपूर्व के धारक ग्यारह ज्ञानी
विच्छिन्न हुई जब इनकी परम्परा वीर के तीन सौ पैंतालीस वर्ष बाद
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तब दुष्काल के प्रवाह से मौखिक श्रुत परम्परा भी विश्रृंखलित होने लगी
काल के प्रवाह से तब उस अनमोल निधि का संकलन करने में
उठे कदम आर्य जनों के काल क्रम से हुई आगमों की पाँच वाचनाएँ अन्तिम वाचना वल्लभी में हुई वीर के नौ सौ अस्सी वर्ष बाद देवर्धिगणि ने किया
अनुभूति एवं दर्शन / 39
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