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उत्पाद--व्यय--ध्रौव्यता एक ही वस्तु में रही जो उत्पन्न हुआ, विनष्ट होता भी है वही इन्हीं दोनों के बीच में ध्रौव्यता रही द्रव्य है नित्य पर्याय अनित्य फिर भी दोनों एक ही एकत्व अनेकत्व भेद और अभेद एक ही वस्तु में है अनुस्यूत इसी सत्य से है अभिभूत अनेकान्त
सीमित क्षमता और भाषा वाला मानव कैसे कर सकता है वस्तु तत्त्व का सम्पूर्ण ज्ञान यदि जान भी ले तो कैसे करेगा आख्यान सर्वज्ञ सम्पूर्ण सत्य का करता है साक्षात्कार किंतु निरपेक्ष अभिव्यक्ति उससे भी संभव नहीं वाचक है स्याद्वाद वाच्य है अनेकान्त
वेदों और उपनिषदों में भी मिलते इसके संकेत न सत् था न असत् भी उससे उत्पन्न हुआ जगत कभी यह बात वेद का अनेकान्त बताता तदेजति तन्नेजति तदूरे तद्वन्तिके यह उपनिषद् का कथन भी वाचक है अनेकान्त दष्टि का स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति स्यात् अवक्तव्य यह विचित्र वचन विन्यास यही तो है अनेकान्त, स्याद्वाद और सप्तभंगी का गूढतम अर्थ विन्यास
अनुभूति एवं दर्शन / 32
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