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विरोधाभासपूर्ण वस्तु के निषेध-मुखी कथन से जन्मा शून्यवाद है तो विधि मुख से वही बना अनेकान्त है एकान्त से बचना दोनों को इष्ट है, फिर भी विधि और निषेधमुख से एक कहलाया अनेकान्तवाद और दूसरा शून्यवाद
आग्रह और दुराग्रह से बचाता सभी दर्शनों के विरोध को मिटाता विरोध में अविरोध का समाहार कर सत्य का उपहार देता अनेकान्त है।
अनुभूति एवं दर्शन / 33
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