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खण्ड-2
जैन दर्शन
अनेकान्त/ अनाग्रह
सत्य को विभिन्न एवं परस्पर विरोधी आयामों से देखना है अनेकान्त नहीं है यह कोई अनर्गल, पागलों का प्रलाप सभी विरोधों का होता यहाँ मिलाप इसी से जगत का व्यवहार जारी है अपेक्षा भेद से माँ, बहन, पत्नी होती एक ही नारी है केवल तार्किक ही नहीं व्यावहारिक भी है अनेकान्त
वस्तु तत्त्व की अनंतधर्मात्मकता इसका है आधार वस्तु है विविध और विरोधी गुणों का पुंज भाव और अभाव से युक्त अस्तित्त्व नास्तित्त्व से संपृक्त था आम खट्टा, हो जाता मीठा वही काल बीतने पर सुगन्ध दुर्गन्ध में बदलती रही आज जो प्रतीत होता है कल वह स्वतः ही बदल जाता है। बदल करके भी वह वही रहता है यही अनेकान्त बतलाता है।
अनुभूति एवं दर्शन / 31
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