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लगता है आघात कहीं सन्तान के व्यवहार से मौन रहकर वह भी सह लेती है नादान समझकर उसकी हर भूल माफ कर देती अपने उपकारों को वह कभी न जतलाती
माँ का वात्सल्य सदैव असीम और अनुपम होता वह तो त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति बन सदैव अपना सुख लुटाती संतान पर
अनुभूति एवं दर्शन / 28
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