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"माँ"
कोमलता और करूणा श्रद्धा और विश्वास की प्रतीक है " माँ " शिशु पालन में माता सेवा करती सन्तान की पूर्णत: वात्सल्य भाव से वह भेद नहीं करती काले – गौरे का सुंदर असुंदर का वह तो सदा ही करती है अपनी ममता का विस्तार स्वयं कितने ही कष्टों को सहती किंतु सन्तान पर दुःख का साया न पड़ने देती संतान को सुलाने कितनी राते वह जागती संतान को हो गर कोई कष्ट वह कभी चेन की नींद न लेती।
हो संतान का भविष्य उज्ज्वल और खुशहाल जीवन कछ बन जाए दस आस में सारी उम्र ही दाँव पर लगा देती संतान का सुख ही माँ का सुख होता, उसका हमेशा एक ही सपना होता संतान का मंगल उसका अपना होता।
अनुभूति एवं दर्शन / 27
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