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अपेक्षाओं की बरात
व्यक्ति अकेला है अन्यों से भिन्न
किंतु उसे यह स्वीकार कहाँ अपेक्षाओं के टूटने से वह पीड़ित है
अनेक आशाएँ और अपेक्षाएं दूसरों से
क्योंकि उनको
अपना मान बैठा है
उसकी अपूर्ण आकांक्षाएँ अपेक्षाएँ
उसका पीछा नहीं छोड़ती
इसी कारण वह दुखी है पीड़ित है
किन्तु अपने मिथ्या आग्रह को वह छोड़ता नहीं
कौन अपना और कौन पराया मान्यताएं ही
किसी को अपना
किसी को पराया बनाती है,
संयोग हुआ है
वृक्ष पर
पक्षियों की तरह
प्रातः काल
अलग-अलग दिशाओं में
उड़ जाना है
बस एक रात ही तो
बाकी है
अपेक्षाओं की बरात की
अनुभूति एवं दर्शन / 14
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