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तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा : ८१ श्वेताम्बर नहीं हो सकता तो फिर कुन्दकुन्द में तीन गाथाओं में चतुर्विध मोक्षमार्ग-प्रतिपादन होने पर भी यह कुन्दकुन्द की परम्परा का ग्रन्थ और उनके ग्रन्थों से निर्मित कैसे हो सकता है ? वस्तुतः ऐसा सोचना हमारी साम्प्रदायिक बुद्धि का परिणाम है । वास्तविकता तो यह है कि आगमों में मोक्षमार्ग के प्रतिपादन को विविध शैलियाँ रही हैं और उमास्वाति ने उनमें से मध्यमार्ग के रूप में त्रिविध साधना मार्ग को शैलो को अपनाया।
(२) पं० जुगल किशोर जी मुख्तार ने तत्त्वार्थसूत्र और उसके भाष्य का आगम से विरोध दिखाते हुए दूसरा तर्क यह दिया है कि सूत्र और भाष्य दोनों में जोव, अजोव, आश्रव, बन्ध, संवर और मोक्ष ऐसे सात तत्त्वों का निर्देश है। जबकि श्वेताम्बर आगमों में तत्त्व या पदार्थ नौ बतलाये गये हैं । स्थानांगमूत्र के नवें स्थान में नौ पदार्थों का तथा उतराध्ययन के २८वें अध्याय में नौ तत्त्वों का उल्लेख मिलता है। इसके आधार पर वे लिखते हैं कि "सात तत्त्वों के कथन को शैली श्वेताम्बर आगमों में हैं ही नहीं।' इससे उपाध्याय मुनि आत्माराम जो ने तत्त्वार्थसत्र और श्वेताम्बर आगम के साथ जो समन्वय उपस्थित किया है उसमें वे स्थानांग के उक्त सूत्र को उद्धृत करने के अलावा कोई भी ऐसा निर्देश नहीं कर सके जिसमें सात तत्त्वों की कथन शैलो का स्पष्ट निर्देश पाया जाता है। सात तत्त्वों के कथन की यह शैली दिगम्बर है-दिगम्बर सम्प्रदाय में सात तत्त्वों और नौ पदार्थों का अलग-अलग रूप से निर्देश किया गया है। अपने इस मन्तव्य को पुष्टि के लिए मुख्तार जो भावप्राभूत से 'नवमपयत्थाई सत्त तच्चाई' नामक उद्धरण भी उपस्थित करते हैं। इसके अतिरिक्त भी दर्शनपाहुड में षद्रव्य, नवपदार्थ, पाँच अस्तिकाय और सात तत्त्व का उल्लेख मिलता है, किन्तु इस आधार पर यह कल्पना कर लेना कि सात तत्त्वों के विवेचन को दौलो दिगम्बर और नव तत्त्वों को शैली श्वेताम्बर है, समुचित नहीं है । क्योंकि पंचास्तिकाय में स्पष्ट रूप से हमें नौ अर्थों का उल्लेख मिलता है। अर्थ, पदार्थ, तत्व आदि में कोई विशेष अर्थ भेद नहीं है । क्या सात तत्त्वों में पुण्य-पाप का योग हो जाने पर वे पदार्थ हो जायेंगे ? उत्तराध्ययन में तो उन्हें नव तत्त्व हो कहा गया है। १. जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, लेखक पं० जुगलकिशोर
मुख्तार, पृ० १३४ । २. वही, पृ० १३४ । ३. भावपाहुड, आचार्य कुन्दकुन्द, गाथा ९५ । '४. उत्तराध्ययन सूत्र।
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