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[ ८ ] बाद निर्मित हुआ है। दुर्भाग्य से किसी ने भी साम्प्रदायिक विभेद और मान्यताओं के स्थिरीकरण के पूर्व तत्त्वार्थसूत्र को रखकर उसकी परम्परा को देखने का प्रयत्न नहीं किया। यही कारण रहा कि उसको किसी परम्परा-विशेष के साथ जोड़ने में विद्वानों ने सम्यक तर्कों के स्थान पर कुतर्कों का ही अधिक सहारा लिया और यह प्रयत्न किया गया कि येन-केन प्रकारेण उसे अपनी परम्परा का सिद्ध किया जाय। यद्यपि पं० नाथूरामजी प्रेमी और पं० सुखलालजी ने इस दिशा में थोड़ी तटस्थता का परिचय दिया और इस सत्यता को स्वीकार किया कि तत्त्वार्थसूत्र के मूलपाठ में कुछ ऐसे तथ्य हैं, जो यह बताते हैं कि उसका श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं की स्थिर मान्यताओं से विरोध है। इसी कारण सम्भवतः पं० नारामजी प्रेमी ने इस ओर झुकने का प्रयत्न किया कि यह यापनीय परम्परा का ग्रन्थ है। उनके इस तर्क में कुछ बल भी है क्योंकि जहाँ तत्त्वार्थसूत्र की कुछ मान्यताएँ श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों हो परम्पराओं के विरोध में जाती हैं, वहीं पुण्यप्रकृति की चर्चा के प्रसंग में वह यापनीयों के अधिक निकट भी है। फिर भी जब तक हम यह सुनिश्चित नहीं कर लें कि तत्त्वार्थसूत्र की रचना और यापनीय की उत्पत्ति में कौन पूर्ववर्ती है, तब तक हमें यह कहने का अधिकार नहीं मिल जाता. कि तत्त्वार्थसूत्र यापनीय ग्रंथ है।
प्रस्तुत कृति में मैंने तत्त्वार्थसूत्र और उसको परम्परा के प्रश्न को. लेकर सभी परम्परागत विद्वानों की मान्यताओं की समोक्षा की है और यह देखने का प्रयत्न किया है कि यथार्थ स्थिति क्या है। इससे मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि तत्त्वार्थसूत्र उस काल की रचना है जब जैनों में श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय जैसे सम्प्रदाय अस्तित्व में नहीं आये थे। हाँ इतना अवश्य था कि आचार्यों में आचार एवं दर्शन के सम्बन्ध में कुछ-कुछ मान्यता भेद थे-जैसे कि आज भी एक ही सम्प्रदाय में देखे जाते हैं, वस्तुतः तत्त्वार्थ की रचना उत्तर-भारत को उस निग्रन्थ धारा में हुई, जिससे आगे चलकर श्वेताम्बर एवं यापनीय परम्पराओं का विकास हुआ है।
अपने इस अध्ययन में मैं जिन निष्कर्षों पर पहुँचा हूँ वे निम्न हैं(१) तत्त्वार्थ की रचना उत्तर-भारत के निर्गन्थ संघ में श्वेताम्बर एवं यापनीय सम्प्रदायों के अस्तित्व में आने से पूर्व हुई है।
(२) तत्त्वार्थ-सूत्र की रचना के समय न तो सम्प्रदाय हो अस्तित्व में आये थे और न सम्प्रदायगत मान्यताओं का स्थिरीकरण हुआ था, किन्तु .
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