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(४) प्रशमरति तत्त्वार्थसूत्र के कर्त्ता की कृति नहीं है, दूसरे शब्दों में ★ इन दोनों के कर्त्ता भिन्न-भिन्न हैं ।
(५) तत्त्वार्थ भाष्य स्वोपज्ञ नहीं है ।
(६) तत्त्वार्थसूत्र और भाष्य में अनेक ऐसे तथ्य हैं, जो श्वेताम्बर परम्परा के विरोध में जाते हैं । अत: उनके कर्त्ता श्वेताम्बर नहीं हो सकते ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परपरा के विद्वान तत्त्वार्थसूत्र और उसके कर्त्ता को अपनो परम्परा का सिद्ध करने का प्रयत्न करते रहे हैं । दोनों ही परम्पराओं में हुए इन प्रयत्नों से इस दिशा में पर्याप्त उहापोह तो हुआ लेकिन अपनी-अपनी आग्रहपूर्ण दृष्टियों के कारण किसी ने भी सत्य को देखने का प्रयास नहीं किया । इसी क्रम में पं० नाथूरामजी प्रेमी जैसे कुछ तटस्थ विद्वानों ने तत्त्वार्थसूत्र के मूलपाठ का श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं से आंशिक विरोध तथा पुण्यप्रकृति के प्रसंग में उसको यापनीय परम्परा के षट्-खण्डागम से निकटता को देखकर यह निष्कर्ष निकाला कि तत्त्वार्थसूत्र और उसके कर्त्ता उमास्वाति मूलतः यापतीय परम्परा के थे । आदरणीय नाथूरामजी प्रेमी के तटस्थ चिन्तन से प्रभावित होकर प्रारम्भ में पं० सुखलालजो एवं पं० दलसुख भाई ने भी इस संभावना को स्वीकार किया था कि तत्त्वार्थसूत्र सम्भवतः यापनीय परम्परा का हो, किन्तु बाद में उन्होंने 'तत्त्वार्थ सूत्र और जैनागम समन्वय' नामक ग्रंथ देखने के पश्चात् अपना निर्णय बदला और पुनः यह माना कि तत्त्वार्थ सूत्र मूलतः श्वेताम्बर परम्परा का ग्रंथ है। पं० नाथूरामजी प्रेमी के मत का समर्थन करते हुए 'यापनीय और उनका साहित्य' नामक ग्रंथ में श्रीमती कुसुम पटोरिया ने भी तत्त्वार्थसूत्र को गणना यापनीय साहित्य में को है ।
मैं जब यापनीय सम्प्रदाय पर अपने ग्रन्थ का लेखन कर रहा था तब संयोग से मुझे दोनों ही परम्पराओं के विद्वानों के विचारों को अध्ययन करने का अवसर मिला साथ ही आदरणीय पं० नाथूराम जी और डॉ० कुसुम पटोरिया के दृष्टिकोण का भी परिचय मिला । मुझे यह प्रतीत हुआ कि तत्त्वार्थसूत्र की परम्परा के सन्दर्भ में अभी तक जो चिन्तन हुआ है वह कहीं न कहीं साम्प्रदायिक आग्रहों के घेरे में खडा है । सभी विद्वान किसी न किसी रूप में उसे सम्प्रदाय के चश्मे से देखने का प्रयत्न करते रहे ! सभी विद्वान लगभग यह मानकर चल रहे थे, कि 'श्वेताम्बर' 'दिगम्बर' और 'यापनीय' सम्प्रदाय पहले अस्तित्व में आये और तत्त्वार्थ सूत्र इनके
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