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वीतराग-मुद्रा
यह चेतना की शुद्ध अवस्था है। ज्ञान के द्वारा चेतना का बोध या अनुभव होता है। प्रियता और प्रियता के आरोपण से ज्ञान विकृत बन जाता है, वह विशुद्ध नहीं रहता। वैसी स्थिति में वह बन्धन का निमित्त बनता है। बन्धन-मुक्ति के लिए वीतराग-मुद्रा उपयोगी है। प्रेक्षाध्यान की तैयारी के समय आसन के पश्चात् मुद्रा बनाई जाती है। 'जैसी मुद्रा, वैसा भाव, जैसा भाव, वैसी मुद्रा' के सिद्धान्त के अनुसार वीतराग-मुद्रा का अभ्यास किया जाता है। वीतराग–मुद्रा को ब्रह्म-मुद्रा भी कहा जाता है। इसके अभ्यास से वीतराग-भाव का क्रमश: विकास होने लगता है। इस मुद्रा का उपयोग ध्यान में किया जाता है।
वीतराग-मुद्रा
ध्यान दर्पण/97
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