________________
उसका नाम है ज्ञान मुद्रा। उसे 'चिन्मय-मुद्रा' भी कहा जाता है। विधि -
दोनों हाथों को घुटनों पर रखें, अंगूठे के पास वाली तर्जनी अंगुली के ऊपर वाले पोर से मिलाएं। हल्का-सा दबाव दें। शेष तीनों अंगुलियां परस्पर सटी हुई सीधी रहेंगी। अँगूठे और तर्जनी के मिलने से जो हाथ की आकृति बनती है, वही ज्ञान-मुद्रा है। ध्यान करते समय सर्वाधिक उपयोग ज्ञान-मुद्रा का किया जाता है। ज्ञान-मुद्रा चित्रानुसार बनाएं।
-
ज्ञान-मुद्रा
96/ध्यान दर्पण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org