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ध्यान के प्रकार
सामान्यतः, ध्यान के प्रशस्त और अप्रशस्त- दो भेद बतलाए हैं। अप्रशस्त-ध्यान के दो भेद हैं- आर्तध्यान और रौद्रध्यान। ये दोनों ध्यान नरक और तिर्यंच-गति के कारण हैं, संसार को बढ़ाने के हेतु हैं, इसीलिए ये अप्रशस्त होने से हेय हैं। प्रशस्त-ध्यान के दो भेद हैं- धर्म्यध्यान और शुक्लध्यान। ये स्वर्ग और मोक्ष के कारण हैं, संसार को अल्प करने के हेतु होने से प्रशस्त और उपादेय हैं। यहाँ पर विषय प्रशस्त ध्यान का है। अप्रशस्त-ध्यान जीवों को अत्यन्त दुःख देने वाला और अनन्त संसार का कारण होता है। अप्रशस्त-ध्यान में पहला आर्त्तध्यान है, इसके चार भेद हैं।
ध्यान के प्रकार
आसध्यान
रौद्रध्यान
धर्मध्यान
शुक्लध्यान
अनिष्ट इष्ट पीडा संयोजक वियोजक चिंतन
निदान आतध्यान|
पृथक्त्व एकत्व सूक्ष्मक्रिया सम्मष्र्छन वितर्क वितर्क प्रतिपाती क्रियानिवृत्ति सविधार निर्विचार
हिंसानन्द
मृषानन्द
चौर्यानन्द
परिग्रहानन्द
आज्ञा विचय
अपाय विचय
विपाक विचय
संस्थान विचय
सालम्बन
निरालम्बन
पदस्थ
पिंडस्थ
रूपस्थ
रूपातीत
98/ध्यान दर्पण
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