SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ध्यान के सहायक अंग स्वाध्याय - 'स्व' का अभ्यास, यानी स्वाध्याय। ध्यान में एक विषय होता है। स्वाध्याय यह ध्यान का प्रारंभ-बिंदु है। जिसे 'स्व' का ज्ञान नहीं, वह ध्यान में प्रवेश नहीं कर सकता। _जप में शब्दों का उच्चारण होता है। वह उच्चारण कभी जोर से, तो कभी मन में होता है। जब भी कभी खुले में दीपक जलाया जाता है, तब उसकी लौ मन की चंचलता की तरह हिलती है, अस्थिर होती है, परंतु जब दीपक कमरे के अंदर ले जाया जाता है, तो वह ज्योति स्थिर हो जाती है, यही ध्यान की अवस्था है। जब दीपक बुझता है, तब वह निरोधात्मक-ध्यान होता है। इस अवस्था में मन का अस्तित्व ही खत्म हो जाता है। समाधि- यह ध्यान की उच्चतम अवस्था है। ध्यान और आहार का घनिष्ठ संबंध है। तामसिक और राजसिक-आहार से जाग्रति नहीं रहती, परंतु सात्विक आहार ध्यान में सहायक बनता है। थोड़ा कम खाना, कम बोलना, मौन रहना फायदेमंद होगा। पेट में वायुदोष-निर्माण न हो, इसलिए आहार की सावधानी रखें। तली हुई चीजें, गरम मसाले, चाय, कॉफी का सेवन अल्प रहे। दूध, दही आदि से कामवासना बढ़ती है, इस कारण इनका अति अल्प मात्रा में सेवन हो। पूर्व व उत्तर दिशा ध्यान के लिए योग्य है। पूर्व देवता की तथा उत्तर मनुष्य की दिशा मानी गई है। ब्रह्ममुहूर्त में किया हुआ ध्यान अधिक सफल होता है। उस समय वातावरण शांत, श्रेष्ठ और स्वच्छ होता है तथा मन भी उत्साहित और तरोताजा रहता है। इसी कारण से पूजा, मंत्रविधि आदि का विशेष समय होता है। ध्यान दर्पण/93 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003602
Book TitleDhyan Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaya Gosavi
PublisherSumeru Prakashan Mumbai
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy