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अतिमानव बनना है। अरविन्द के योग का रहस्य रहा है- जीवन के अन्दर दिव्य शक्ति की ज्योति, शक्ति, आंनद और सक्रिय निश्चलता को उतारकर मानव-जीवन को सर्वांशत: रूपान्तरित करना। ६. बौद्ध- चार अर्थ सत्य हैं- १. दुःख २. दुःख समुदाय ३. दु:ख-निरोध ४. दु:ख-निरोधगामिनी। इस मार्ग का अवलंबन करने से दुःखों से छुटकारा मिल सकता है। बौद्ध–साधना में समाधि भावना (शपथ) का और विपश्यना भावना का विशेष महत्व है। विपश्यना के चार प्रकार हैं- १. काय २. वेदना ३. चित्त और ४. धर्म-विपश्यना। ७. ताओ-धर्म- इस धर्म के संस्थापक लाओत्से ने 'ताओ ते किंग' नामक ग्रंथ लिखा। ताओ का अर्थ विश्व का मार्ग और स्वदर्शन है। तेह का अर्थ प्रेम, जीवन, प्रकाश, संकल्प, सद्गुण है। इसके आचरण से आत्मसाक्षात्कार किया जा सकता है। इस धर्म की साधना-पद्धति का मूलाधार प्रेम और नम्रता ही है। ८. कन्फ्यूशियस-धर्म- मानवीय-जीवन की वृत्तियों को नियंत्रण के लिए चीन में लाओत्से ने अपने धर्म की स्थापना की। उन्होंने सद्गुणों को आधार बनाया। ९. पारसी-धर्म- सामाजिक-जीवन को नियंत्रित करने का यह एक स्वरूप है। धार्मिक-आचरण कर्मकाण्ड से बंधा नहीं है। इस धर्म में अग्निदेव की ज्योति को आधार लेकर दया, दान, न्याय, नीति इत्यादि की प्रस्थापना और मनुष्य के दस कर्त्तव्य बताए गए हैं। मनुष्य को निंदा, क्रोध, चिंता, ईर्ष्या, आलस्य इत्यादि का त्याग करना चाहिए। १०.यहूदी-धर्म- इसका मूल ग्रन्थ 'पुरानी बाइबिल' है।
ध्यान दर्पण/91
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